तोरई, जिसे ‘लुफा’ के नाम से भी जाना जाता है, अब किसानों के लिए नए और लाभकारी कमाई का जरिया बन रही है। उत्तेर प्रदेश फर्रुखाबाद के कायमगंज क्षेत्र के हाजीपुर गांव के प्रसिद्ध किसान पंकज गंगवार तोरई की खेती से हर महीने एक लाख रुपए से अधिक की कमाई कर रहे हैं। वे बीते 3 वर्षों से तोरई की खेती कर रहे हैं। कुल दो बीघे में इस फसल को उगाते है। एक बीधे में 25 से 30 हजार रुपये के बीच लागत आती है ।
तोरई की उन्नत खेती
गंगवार ने बताया कि उन्होंने तोरई की नर्सरी तैयार की, जिससे पौधों की तैयारी के बाद खेत में अच्छी रोपाई की जा सकती है। इस प्रकार से तोरई बाजार में अच्छे दामों पर बिक रही है, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा हो रहा है। उनके अनुसार, जैविक खाद का प्रयोग करने से नर्सरी में रोग का संक्रमण कम होता है और खेती की लागत भी कम होती है। उन्हें रोजाना 3 कैरेट तोरई का उत्पादन हो रहा है। एक कैरेट तोरई में 24 किलो माल होता है।
तकनीकी जानकारी :
गंगवार ने बताया कि तोरई की खेती के लिए नमीदार खेत में जैविक खाद का उपयोग करने के बाद, खेत को समतल किया जाता है और 2.5 x 2 मीटर की दूरी पर 30 x 30 सेमी के गड्ढे खोदे जाते हैं। तोरई की बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है। तोरई की फसल 70-80 दिनों में फल देना शुरु कर देती है. इस बीच समय पर सिंचाई, निराई-गुड़ाई और पोषण प्रबंधन का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
बाजार में डिमांड :
तोरई की खेती की मांग छोटे से लेकर बड़े शहरों में भी बढ़ रही है। इसकी सब्जी स्वादिष्ट होती है और तोरई कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन-ए से भरपूर होती है। तोरई के एक बीघा खेत में 70-80 हजार रुपए की आसानी से कमाई हो जाती हैं।
जलवायु और तापमान :
तोरई की खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु सही मानी जाती है, और 25 से 37 डिग्री सेल्सियस तापमान सही माना जाता है। तोरई की खेती में मिट्टी का पीएच लेवल 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।