कपास गुणवत्ता और उत्पादन के मामले में चीन ने एक बार फिर भारत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में मात दी है। पिंक बॉलवर्म यानि गुलाबी सुंडी किट सहित प्राकृतिक समस्याओं के कारण देश में कपास (Cotton) की फसल को भारी नुकसान हुआ है। इसका सीधा असर कपास उत्पादकों पर पड़ा है और कपड़ा उद्योग में गुणवत्ता का मुद्दा फिर से सामने आया है। गुलाबी बॉलवर्म के कारण कपास का उत्पादन लगातार कम हो रहा है। परिणामस्वरूप, भारत दुनिया में कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। चीन ने इस साल एक बार फिर कपास उत्पादन में बढ़त बना ली है।
विश्व में सबसे अधिक खेती भारत में
आंकड़ों को देख कर आप भी चौंक जायेंगे कि विश्व में सबसे अधिक कपास की खेती भारत में होती है। आपको बताते चले कि भारत में 126 से 129 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती की जाती है। चीन में कपास की खेती 33 लाख हेक्टेयर पर ही होती है और अमेरिका में 38 से 41 लाख हेक्टेयर तो वही ब्राज़ील में वृक्षारोपण 12 से 14 लाख हेक्टेयर में होता है। लेकिन गुलाबी बॉलवॉर्म सर्वाधिक खेती की जाने वाले भारत में प्री-सीज़न या सिंचित कपास क्षेत्रों में भी कम उत्पादन का कारण बन रहा है। महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में यह उत्पादन केवल चार क्विंटल प्रति एकड़ और कुछ हिस्सों में ढाई से तीन क्विंटल प्रति एकड़ है पर ही सिमट कर रह गया है।
शुष्क भूमि भी है किसानो की समस्या
भारत में शुष्क भूमि क्षेत्र में प्रति एकड़ 80 किलोग्राम से एक क्विंटल तक कपास का उत्पादन मुश्किल से हो पाया है। चीन की कपास उत्पादकता 1200 किलोग्राम रुई प्रति हेक्टेयर बनी हुई है। लेकिन भारत की कपास उत्पादकता 500 किलोग्राम रुई प्रति हेक्टेयर से घटकर 352 किलोग्राम रुई प्रति हेक्टेयर हो गई है। 2008 से 2011 की अवधि के दौरान भारत में कपास की उत्पादकता 400 से 500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। लेकिन सूखा, प्राकृतिक आपदाएं और फसल को बर्बाद करने वाले गुलाबी सुंडी किट के कारण कपास की खेती में लगातार गिरावट आई है।
डिमांड अधिक और सप्लाई में कमी
देश में कपड़ा उद्योग की आवश्यकता 310 से 300 लाख गांठ है। लेकिन उत्पादन के मामले में ये आकड़ा केवल 295 लाख गांठ तक ही सीमित है।कपड़ा उद्योग के विशेषज्ञों को यह भी डर सता रहा है कि आने वाले समय में भारत, जो कपास का निर्यातक है, कपास आयातक न बन जाए।
कीमत न मिलने से सड़ रहा है कपास
देश में कपास की मांग को देखते हुए उत्पादन कम से कम 450 से 500 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलो कपास) होनी चाहिए। विश्व में सबसे अधिक ऑस्ट्रेलिया में कपास उत्पादित किया जाता है। ऑस्ट्रलिया में प्रति हेक्टेयर 1800 किलोग्राम कपास उत्पादित किया जाता है। इसके बाद चीन, ब्राजील, अमेरिका की उत्पादकता है। बताया गया है कि चीन में इस साल का उत्पादन 349 लाख गांठ है। जबकि अमेरिका में भी उत्पादन 227 लाख गांठ से आगे है।
इन देशों में कपास का क्षेत्रफल छोटा है। भारत में उत्पादित कपास गुणवत्ता को लेकर कपड़ा व्यापारी नाखुश हैं। देश में कपास की अच्छी उत्पादक किस्में नहीं हैं। कपास की उत्पादन क्षमता अधिक होने पर भी योग्य कीमत न मिलने से कपास किसानों के घर में सड़ता रहता है। कई बार उत्पादन इतना कम होता है कि लागत ही नहीं निकलती। इस बार भी पिंक बॉलवर्म और अन्य समस्याओं के कारण देश में कम से कम 15 मिलियन गांठ कपास का उत्पादन घट सकता है । विशेषज्ञों का मानना है कि कपास की खेती में इस बार देश को कम से कम 25 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
शुष्क भूमि क्षेत्रों के कारण कठिनाई
देश में कपास का 60% क्षेत्र शुष्क भूमि पर है। महाराष्ट्र में कपास का 74 प्रतिशत क्षेत्र शुष्क भूमि पर है। महाराष्ट्र में कपास 44 लाख हेक्टेयर उगाया जाता है। ये राज्य में सबसे बड़ी फसल है। इसके बाद गुजरात में 24 से 25 लाख हेक्टेयर पर कपास की खेती की जाती है। गुजरात में कपास के 55 प्रतिशत क्षेत्र में पानी की उपलब्धता है। तेलंगाना में भी 18 लाख हेक्टेयर में कपास होती है। वहां भी अधिकतम क्षेत्र सूखा है. जहां कपास की फसल अधिक होती है, वहां पिंक बॉलवर्म के कारण पैदावार पर असर पड़ता नजर आ रहा है।
कपास की खेती तकनीकी संशोधन की आवश्यकता
कपास की गुणवत्ता सुधारने और प्राकृतिक आपदाओं से खेती को सुरक्षित रखने के लिए कपड़ा उद्योग में कपास की किस्मों से संबंधित आनुवंशिक संशोधन तकनीक पर तेजी से काम करने की जरूरत का मुद्दा उठने लगा है। अगर सरकार जल्द ही इस मुद्दे पर गौर नहीं करेगी तो भारत जो कि कपास का निर्यातक है जल्द ही उसे अन्य देशों से कपास आयात करना पड़ सकता है।