कश्मीर में आतंकवाद से परे किसानों की एक दुनिआ भी है जो कामयाबी के नए झंडे गाड़ रहे हैं। बात करें दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग की जो कभी पाकिस्तान से पनपने वाले आतंकवाद का गढ़ था, आज यहां के किसान ने इस जगह की तस्वीर बदल दी है। यहां के निवासी अब्दुल अहमद लोन एक ऐसे किसान है जिन्होंने अपनी सफलता नई इबारद लिख दी। आज वे न सिर्फ एक किसान हैं बल्कि एक सफल उद्यमी भी हैं। उनका ये सफर यहाँ के किसानों के लिए प्रेरणा की वजह बन गया है।
अब्दुल अहमद लोन कश्मीर के किसानों के लिए बने प्रेरणा
1994 में शुरू हुआ उनका ये सफर आज भी बदस्तूर जारी है। अब्दुल अहमद लोन ने यहां वर्मी कंपोस्ट की यूनिट्स लगाई हैं। आज वह खुद तो हर साल करोड़ों कमा ही रहे हैं लेकिन साथ ही साथ गांव के लोगों को भी रोजगार मुहैया करा रहे हैं।
ट्रेन में सफर के दौरान मिला आइडिया
अब्दुल अहमद लोन के उद्यमी बनाने की कहानी भी बड़ी अनोखी है। जब वे ट्रेन से मुंबई से कश्मीर का सफर कर रहे थे तब उनकी मुलाक़ात सिक्किम के एक ऐसे किसान से हुई जो ऑर्गेनिक खेती करता था। उस किसान की बातों से अब्दुल अपने पारिवारिक खेत में जैविक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित हुए। वे फोन के जरिये उस किसान से खेती के लिए सलाह लेते थे। सिक्किम के किसान ने उन्हें जैविक खेत से ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की सलाह दी।
कृषि विज्ञान केंद्र से ली 15 दिन की ट्रेनिंग
इसके बाद अब्दुल ने कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) अनंतनाग की देखरेख और मार्गदर्शन में 15 दिन तक ट्रेनिंग ली। फिर छह क्विंटल प्रति गड्ढे की क्षमता वाले 30 कंक्रीट गड्ढों वाली वर्मी कंपोस्ट यूनिट को शुरू किया। उनका दावा है कि वह पहले शख्स हैं जिन्होंने कश्मीर में वर्मीकंपोस्टिंग की शुरुआत की।
रोज होती है 50000 रुपये की इनकम
वर्मी कंपोस्ट के साथ, अब्दुल ने न केवल अपने खेत की उर्वरता में सुधार किया बल्कि इसे आय के अतिरिक्त स्रोत में भी बदल दिया। आज वे 1,000 बेड्स में पांच टन वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन रोज करते हैं। इससे उन्हें रोज 50000 रुपये की इनकम होती है। पिछले साल उनका सालाना टर्नओवर 1.5 करोड़ रुपये था। 50 साल के अब्दुल के मुताबिक जब उन्होंने इसकी शुरुआत की तो कश्मीर में वर्मी कंपोस्ट जैसी किसी भी चीज के बारे में कोई नहीं जानता था।
जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ी वर्मी कंपोस्ट यूनिट्स के मालिक
अब्दुल गाय का गोबर, रसोई का कचरा, पौधों की पत्तियां, मक्के का कचरा, घास आदि लाते हैं और इसे वर्मी कंपोस्ट में बदल देते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, वे वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए केंचुओं का उपयोग करते हैं। साथ ही ठोस कणों को फिल्टर करने के लिए मशीनों का भी प्रयोग किया जाता है। आज लोन जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ी वर्मी कंपोस्ट यूनिट्स के मालिक हैं और उन्हें वर्मी कंपोस्ट बनाने में महारत हासिल है। लोन को भारत सरकार द्वारा प्रगतिशील किसान और उद्यमी पुरस्कार, कृषि विज्ञान केंद्र पुरस्कार बेस्ट किसान पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया है।
हर साल एक यूनिट से 2500 बैग वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन
उन्होंने ही दक्षिण कश्मीर में वर्मी कंपोस्ट यूनिट भी लगाई। बाद में, उन्होंने बिजबेहरा, पुलवामा, अनंतनाग, बडगाम, बारामूला, बांदीपोरा, काजीगुंड, जम्मू और उधमपुर जैसी जगहों पर इसी तरह की इकाइयां स्थापित कीं। लेकिन मेन यूनिट अनंतनाग में ही है जहां से उन्होंने इसकी शुरुआत की थी। आज इकाइयों में 75 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है। हर साल एक यूनिट से 2500 बैग वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन होता है जिसे कश्मीर में बेचा जाता है।