ओडिसा: अरहर की दाल की खपत देश में सबसे ज्यादा होती है। घरों में अरहर की दाल का सेवन दूसरी दालों के मुकाबले अधिक किया जाता है। ऐसे में अरहर की दाल के उत्पादन पर सरकार विशेष ध्यान देती है।
खरीफ सीज़न में धान, मकई के साथ-साथ दलहनी फसल के रूप में अरहर की खेती की जाती है। ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में भी कई किसान खरीफ सीज़न में अरहर दाल की खेती करते हैं। लेकिन इस बार उनके बीच खेती से दूर जाने की खबरें आ रही हैं। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि एमएसपी के मूल्य से खुले बाजार में अरहर का मूल्य काफी कम है। इसलिए किसानों का मन इसे खेती करने से हट रहा है।
किसानों की चिंता यह है कि उनका बाजारी जुड़ाव भी बहुत कमजोर है, जिसके कारण वे अपने दाल के खरीदारों को नहीं मिल पाते हैं। जो उन्हें अच्छी कीमत पर बेच सकें। यह पहली बार नहीं है जब किसान अरहर की खेती से दूर जाने की सोच रहे हैं पिछले साल भी यहां के किसानों ने अपनी उपज को एमएसपी पर बेचने से परहेज़ किया था। आर्थिक मामलों की मंत्रीमंडलीय समिति ने हाल ही में अरहर दाल के लिए एमएसपी की कीमत 68 रूपये से बढ़कर 70 रूपये कर दी है। खुदरा बाजार में अरहर की दाल 150 से 170 रूपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक अरहर की दाल पर निर्धारित कम एमएसपी का फायदा निजी व्यापारी और बिचौलिये ने उठाते हैं। वे सीधे किसानों से उच्च मूल्यों में अरहर दाल खरीद रहे हैं। इसके कारण कोई भी किसान सरकार को धान बेचने के लिए तैयार नहीं हो रहा है। खबर के मुताबिक एक अधिकारी ने दावा किया कि पिछले साल ओडिशा स्टेट को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (MARKFED) को 66 रुपये प्रति किलोग्राम के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अरहर की खरीद का जिम्मा सौंपा गया था पर उस साल मार्कफेड द्वारा दाल की खरीद लगभग शून्य रही थी।
खबर के अनुसारअधिकारी ने बताया कि अरहर की मांग बढ़ गई है और इससे किसानों को थोड़ा लाभ मिल रहा है लेकिन किसानों को वर्तमान बाजार कीमत के बारे में जानकारी नहीं होती है जिससे उनकी कमाई प्रभावित होती है और वे अपने उत्पादों को बेहद कम कीमत पर बिचौलियों को बेचने के लिए सहमत हो जाते हैं। खबर में मिली जानकारी के अनुसार जिले के छोटे और सीमांत किसानों की स्थिति इतनी खराब है कि उनकी पहुंच सीधे बाजार तक भी नहीं होती है लेकिन इसके बावजूद वे अपनी खरीफ सीजन में दाल की खेती छोड़ने की सोच रहे हैं।