जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से हो रहा है मछली के कारोबार पर असर

महाराष्ट्र में मच्छीमार व्यवसाय संकट में हैं। जलवायु परिवर्तन, समुद्र में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप के कारण मछली की संख्या दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है। महाराष्ट्र के समुद्रों में एक समय प्रचुर मछली संपदा थी और लाखों मछुआरे अपनी आजीविका के लिए इस पर निर्भर थे।लेकिन अब हालत बद्तर हो गए हैं। झीले सुख रही हैं इससे मीठे पानी के मत्स्योत्पादन पर भी असर पड़ रहा है। राज्य में समुद्री मछली पकड़ने और मीठे पानी की जलीय कृषि दोनों खतरे में हैं और धीर धीरे ये व्यवसाय सूखे की मार झेल रहा है।

सरकार की नीतियां केवल कागज पर सीमित

पांच साल पहले देश में एक व्यापक नीलक्रांति नीति तय की गई थी। ब्लू इकोनॉमी के माध्यम से समुद्री मत्स्य पालन को बढ़ावा देने, प्रबंधन और विकास करने का भी निर्णय लिया गया। मछली उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ निर्यात में वृद्धि के लिए भी पिछले कुछ वर्षों के केंद्रीय बजट में काफी वित्तीय प्रावधान किया जा रहा है। लेकिन इन सबके अपेक्षित परिणाम नहीं दिख रहे हैं।

पिछले साल मानसून के दौरान कम वर्षा के कारण झीलें सूख रहीं हैं। जिससे मीठे पानी में मछली पकड़ने पर असर पड़ रहा है। अनुमान है कि झील में पानी कम होने से राज्य के तीन हजार से अधिक मछुआरा संगठनों का मछली उत्पादन 50 प्रतिशत तक घट जायेगा। जिससे लाखों परिवारों की आजीविका की समस्या उत्पन्न हो गयी है।

अवैध तरीके से मछली पकड़ने से पारम्परिक व्यवसाय संकट में

एक्वाकल्चर ताजे पानी में मछली के बीज डालकर किया जाता है, जबकि समुद्री मछली पकड़ने का काम समुद्री मछलियों और उपलब्ध फ़ीड पर उत्पादित मछलियों के प्राकृतिक प्रजनन द्वारा किया जाता है। मछली के बीज की कमी, कम गुणवत्ता वाले मछली के बीज, मछली की उच्च मृत्यु दर के कारण मीठे पानी की जलीय कृषि की उत्पादकता मूल रूप से बहुत कम है। इसके अलावा, मीठे पानी की मछली पालन भी सूखे से प्रभावित होती है।

प्रदूषण के कारण मछलियां हो रही हैं विलुप्त

समुद्री मछली पकड़ने की कई सीमाएँ हैं। समुद्र में बढ़ते प्रदूषण के कारण कई मछलियाँ मर रही हैं, जबकि कुछ प्रजातियाँ पलायन कर रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग मछली सहित समग्र समुद्री जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। अरब सागर के साथ-साथ बंगाल की खाड़ी के कुछ हिस्सों में शून्य ऑक्सीजन क्षेत्र बन गए हैं।

ऐसे इलाकों से मछलियां दूसरी जगहों की ओर पलायन कर रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में समुद्र में एशियाई सीबास,लॉबस्टर,मांदेली,सिल्वर बार, प्रौन्स, पापलेट, सुरमई, खेकड़ा जैसी कई प्रजातियों की संख्या कम हो गई है। इन सबके अलावा,कई मछुआरे मछली पकडने के लिए एलईडी लाइट्स का उपयोग करते हैं। इस तरह के अवैध तरीकों ने पारंपरिक मछुआरों की आर्थिक आय पर बड़ा प्रभाव डाला है। कर्नाटक और गुजरात राज्यों के हाई स्पीड ट्रॉलर ने राज्य के मछुआरों का जीना मुश्किल कर दिया है। इन ट्रॉलर्स ने राज्य की समुद्री सीमाओं का अतिक्रमण कर करोड़ों रुपये की मत्स्य संपदा हड़प ली है।

मछली के कारोबार के लिए सरकार की सख्ती जरुरी

यदि राज्य में मछली उत्पादन बढ़ाना है तो मछली बीज की कमी को दूर करना होगा। मत्स्य व्यवसाय के लिए गुणवत्तापूर्ण मछली बीज की आपूर्ति की जानी चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाए कि तालाब में बोटुकिली सहित अन्य मछलियों का अच्छा पालन हो। समुद्र का प्रदूषण कम करने के लिए विदेशों से मछली पकड़ने वाली यांत्रिक और यंत्रीकृत नौकाओं पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। एलईडी फिशिंग रोकनी चाहिए। समुद्री मछली पकड़ने की मौजूदा स्थिति को देखते हुए आधुनिक गश्ती नौकाओं को तैनात करना जरुरी है। स्पीडबोट गश्ती के लिए जिलावार अलग-अलग प्रवर्तन सेल बनाने चाहिए। तभी अनियमित, अवैध पर्ससीन, एलईडी, हाई स्पीड ट्रॉलर को रोका जा सकता है।

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