भारत में बटेर पालन का व्यवसाय तेजी से पैर पसार रहा है। किसान भी बटेर पालन को मुर्गियों से ज्यादा महत्व देने लगे हैं। इसकी एक वजह यह भी है की बटेर बेचने के लिए जल्दी तैयार हो जाते हैं। इसमें कम फैट होता है इसलिए चिकन खाने के शौकीन भी बटेर के मांस को पसंद कर रहें हैं। जापान और ब्रिटेन में मांस और अंडे के लिए बड़े पैमाने पर इस पक्षी का पालन किया जाता है। बटेर पालन को भारत में किसान तेजी से अपना रहे हैं क्योकि इसका आकार छोटा होता है और कम जगह में भी इसका पालन किया जा सकता है। इतना हीं नहीं, बटेर पालन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह केवल पांच सप्ताह मे ही बेचने के लिए तैयार हो जाती है।
केवल पांच सप्ताह मे ही बेचने के लिए तैयार
व्यावसायिक मुर्गीपालन में चिकन फार्मिंग के बाद बत्तख पालन और तीसरे स्थान पर जापानी बटेर पालन का व्यवसाय आता है। जापानी बटेर के अंडे का वजन उसके शरीर के वजन का आठ प्रतिशत होता है, जबकि मुर्गी का तीन प्रतिशत ही होता है। जापानी बटेर को 70 के दशक में अमेरिका से भारत लाया गया था जो कि अब भारत में भी व्यावसायिक रूप ले चुका है।
चिकन की तुलना में बटेर का मांस अधिक स्वादिष्ट
इनमें परिपक्वता जल्दी आती है और 6-7 सप्ताह में अंडे देना शुरू कर देती हैं। इनमें अंडे देने की काफी अधिक क्षमता होती है। एक बटेर एक साल में 280 अंडे तक देती है। चिकन की तुलना में इसका मांस अधिक स्वादिष्ट होता है। कम फैट होने के कारण शरीर और दिमाग की वृद्धि में सहायक होता है।
बटेर पालन के लिए स्थान का चुनाव महत्वपूर्ण
बटेर पालन के लिए स्थान का चुनाव महत्वपूर्ण है। इसके लिए आवास हवादार और रोशनीयुक्त होना चाहिए उसमें प्रकाश और पानी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। एक वयस्क बटेर को 200 वर्ग सें.मी. जगह में रखना चाहिए। इसको सूर्य की सीधी रोशनी और सीधी हवा में बचाना चाहिए। मुर्गी की अपेक्षा बटेर अधिक गर्म वातावरण में रह सकती है। ब्रूडिंग आवास में खिड़कियां और रोशनदान का होना जरूरी है जिससे एक समान रोशनी और हवा बटेर को मिल सके।
चूजों को पहले दो सप्ताह तक 24 घंटे प्रकाश की आवश्यकता
इसके चूजों को पहले दो सप्ताह तक 24 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है और गर्मी पहुंचाने के लिए बिजली या अन्य स्त्रोत की व्यवस्था होनी चाहिए। बटेर के लिए ब्रूडर गृह का तापमान पहले सप्ताह में 95 डिग्री फॉरेनहाइट होना चाहिए। इसके बाद क्रमशः 5 डिग्री फॉरेनहाइट धीरे-धीरे प्रति सप्ताह कम करते रहना चाहिए। बटेर पालन दो प्रकार की आवास प्रणाली में किया जा सकता है।
चूजों को खाना खिलाने और पानी पिलाने पर विशेष ध्यान
बटेर पालन में इनके चूजों का खास ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि अगर ध्यान नहीं रखा गया को मृत्यु दर अधिक हो सकती है। छोटे बच्चों में अधिक मृत्यु दर का कारण भूख भी माना जाता है। इसलिए इसके चूजों को खाना खिलाने और पानी पिलाने पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। जबरदस्ती खिलाने के लिए 15 दिनों तक प्रति एक लीटर पानी पर 100 एमएल की दर से दूध और प्रति 10 बच्चों पर एक उबला हुआ अंडा दिया जाना चाहिए।
यह छोटे बच्चों की प्रोटीन की कमी को पूरा करता है। खाने के बर्तन को धीरे धीरे उंगलियों से थपथपाकर बच्चों को खाने की तरफ आकर्षित किया जा सकता है। इसके अलावा फीडर और पानी पिलाने वाले बर्तन में रंग बिरंगे कंचे या पत्थर रखने से बटेर के बच्चे आकर्षित होते हैं। इन्हें हरा रंग पसंद होता है इसलिए उनके खाने की मात्रा बढ़ाने के लिए कुछ कटे हुए पत्ते मिला देने चाहिए।
बटेर पालन की मुख्य विशेषताएं
बटेर पक्षी का छोटा आकार (150 से 200 ग्राम शरीर भार) होने के कारण इस व्यवसाय को करने के लिए कम जगह की आवश्यकता होती है। इसका रखरखाव काफी आसान होता है।
यह 5 सप्ताह में ही मांस के लिए तैयार हो जाती है।
बटेर के अंडे और मांस में अमीनो अम्ल, विटामिन, वसा और खनिज लवण की प्रचुर मात्रा होती है।
बटेर में रोग प्रतिरोधक क्षमता होने के कारण इनको किसी भी प्रकार का टीका लगाने की आवश्यकता नहीं होती है। इनमें रोग न के बराबर होते हैं।
मादा बटेर 6 सप्ताह (42 दिन) में अंडा उत्पादन शुरू कर देती है, जबकि कुक्कुटपालन (अंडा उत्पादन करने वाली मुर्गी) में 18 सप्ताह (120 दिनों) के बाद अंडा उत्पादन शुरू होता है।
बटेर को खुले में नहीं पाला जा सकता है। इसका पालन बंद जगह पर किया जाता है क्योंकि यह बहुत तेजी से उड़ने वाला पक्षी है। यह तीन सप्ताह में बाजार में बेचने के योग्य हो जाती है।
अंडा उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 18 से 20 ग्राम दाना खाती है, जबकि मांस उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 25 से 28 ग्राम दाना खाती है।
पहले दो सप्ताह में बटेर पालन में बहुत ध्यान देना होता है जैसे कि 24 घंटे रोशनी, उचित तापमान, बंद कमरा तथा दाना-पानी इत्यादि।