संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने किसानों और खेत मजदूरों के मुद्दे पर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मोर्चा बुधवार 10 जनवरी से 20 जनवरी तक सरकार के खिलाफ देश भर में किसान-मजदूर जनजागरण अभियान चलाएगा। इसके लिए नई दिल्ली में जन जागरूकता अभियान के लिए नोटिस और पत्रक जारी किया गया। पत्रक और नोटिस का देश की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद किया गया है। ताकि आम लोग एसकेएम की अपील को समझ सकें। पूरे भारत में जिला स्तर पर 26 जनवरी 2024 को आयोजित होने वाले किसान ट्रैक्टर मार्च में अधिक से अधिक लोगों को आकर्षित करने के लिए भी यह अभियान चलाया जा रहा है ।
अभियान के तहत मुख्य रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी का मुद्दा उठाया जाएगा। क्योंकि इसके अभाव में किसानों को उनकी फसलों का अधिक दाम नहीं मिल पा रहा है। संगठन ने सी2+50% के स्वामीनाथन फॉर्मूले पर सभी फसलों के लिए एमएसपी गारंटी की मांग की है। संगठन ने कहा कि एमएसपी के मुद्दे पर सरकार ने लिखित में वादा किया था कि वह एक समिति गठित कर इस मुद्दे पर विचार करेगी।
कृषि संकट के प्रति लोगों को जागरूक करने का अभियान
इसके अलावा मंडियों को बढ़ाने, कृषि भंडारण और प्रसंस्करण की सेवा बढ़ाने और जमाखोरी और कालाबाजारी को रोकने की मांग की गई है। सरकार से बिजली की प्रीपेड मीटर स्कीम को वापस लेने और किसानों का कर्ज माफ करने की भी मांग की गई है। पत्रक देश और किसानों में लंबे समय से चल रहे कृषि संकट को संबोधित करता है, अभियान कृषि संकट को संबोधित करने, किसानों और श्रमिकों के लिए अधिक आय और स्थिर रोजगार सुनिश्चित करने और रोजगार पैदा करने के लिए कॉर्पोरेट मुनाफाखोरी और लूट को रोकने का प्रयास करता है।
जनता का समर्थन जुटाने की कोशिश
एसकेएम कार्यकर्ता गांवों और कस्बों में घर-घर जाकर, नोटिस और अन्य प्रचार सामग्री वितरित करेंगे। इतना ही नहीं, 24 अगस्त 2023 को नई दिल्ली में पहले अखिल भारतीय मजदूर-किसान सम्मेलन में पारित की गई मांगों को आम जनता तक पहुंचाएंगे। लोकसभा चुनाव से पहले किसानों का यह जनजागरण अभियान राजनीति के रूप में भी महत्वपूर्ण है। जिसमें सरकार से लड़ने से पहले आम जनता का समर्थन जुटाने की कोशिश की जा रही है।
किसान अभियान में शामिल होंगे श्रमिक संगठन
एसकेएम ने कहा कि अभियान का लक्ष्य भारत के 30.4 करोड़ परिवारों में से 40 तक पहुंचना है। यह अभियान मोदी सरकार की कॉर्पोरेट-पैरा-कॉर्पोरेट विकास और प्रति व्यक्ति आय में गिरावट, बढ़ती आर्थिक असमानता, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य और श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी से वंचित करने के कारण जनता के शोषण और पीड़ा की कहानी को उजागर करेगा। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भी जन जागरण अभियान में शामिल होने का फैसला किया है। अभियान की तैयारी के लिए राज्य स्तरीय समन्वय समिति की बैठकें आयोजित की जा रही हैं।