चालू सीजन के दौरान महाराष्ट्र में 202 मिलें गन्ने की पेराई कर रही हैं। अब तक 441.01 लाख टन गन्ने का इस्तेमाल चीनी बनाने के लिए किया गया है, जिसकी कीमत करीब करोड़ रुपये है। हालांकि चीनी मिलों ने किसानों को केवल 13,056 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। जो कुल बकाया एफआरपी का 96 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि किसानों पर अभी भी चीनी मिलों का 586 करोड़ रुपये बकाया है।
मीडिया संस्थान बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, मिलों के प्रदर्शन के विश्लेषण से पता चलता है कि 85 चीनी मिलों ने एफआरपी का 100 प्रतिशत तक भुगतान किया है। जबकि 50 मिलों ने कुल एफआरपी का 60 से 80 प्रतिशत के बीच भुगतान किया है। हालांकि इस सीजन के लिए 117 कारखानों का भुगतान अभी भी लंबित है। इससे किसान और किसान संगठन नाराज हैं। किसानों ने जल्द ही चीनी मिलों को एफआरपी का पूरा भुगतान करने की मांग की है। किसान संगठनों का कहना है कि अगर चीनी मिलें समय पर गन्ने का भुगतान करेंगी तो किसान उस पैसे से समय पर दूसरी फसलों की बुवाई कर सकेंगे।
उपज पर सीधा असर
कर्नाटक सीमा के पास कुछ मिलों ने किसानों से कथित कमी के कारण राज्य भर में गन्ने का परिवहन नहीं करने का आग्रह किया है। इस बीच, मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों में गन्ना किसानों को चिंता का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि गन्ना उठाने में देरी और घटते पानी के भंडार ने फसल की पैदावार पर सीधा प्रभाव पड़ने की आशंका जताई है।
मिलों को चिंता करने की जरूरत नहीं है
वेस्ट इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बीबी थोंबरे ने कहा कि मिलों को गन्ने की कमी से परेशान होने की जरूरत नहीं है। उन्होंने राज्य में हाल ही में हुई बारिश के लिए गन्ने की फसल में अभूतपूर्व 8-10 प्रतिशत की वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया। थोम्बरे ने कहा कि उपज में वृद्धि का राज्य में समग्र चीनी उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
यह है किसानों की मांग
वहीं, कल खबर सामने आई थी कि महाराष्ट्र के लातूर में किसानों ने सरकार से सोयाबीन का भाव बढ़ाकर 9000 रुपये प्रति क्विंटल करने और टमाटर का आयात बंद करने की मांग की है। साथ ही किसानों ने लातूर को सूखा घोषित कर मुआवजे की मांग भी उठाई थी। किसानों ने अपनी मांगों को लेकर शहर के हरगुल रेलवे स्टेशन पर रेल रोको आंदोलन करने की कोशिश की। पुलिस ने उसे स्टेशन पर रोक लिया और हिरासत में ले लिया।