भारत में कंद फसलों का Production बड़े पैमाने पर किया जाता हैं और इन्ही में से एक नाम है अरबी। जिसे अरुई,घुइयां ,कुचई साथ ही वैज्ञानिक नाम Colocasia Esculenta से जाना जाता हैं। इसके कंद में जहां भूरपूर मात्रा में स्टार्च होता है। वहीं अरबी की पत्तियों में विटामिन ए, कैल्शियम, फॉस्फोरस और आयरन पाया जाता है।
गर्मियों के सीजन में सब्जियों की किल्लत रहती है वही अरबी की सब्जी इस कमी को काफी हद तक दूर करती हैं। इसलिए अगर किसान गर्मियों में इसकी खेती करते हैं तो बपंर उपज से double कमाई कर सकते हैं।
जानें अरबी की बुआई का तरीका
अरबी की खेती के लिए बलुई मिट्टी को सबसे बेहतर माना जाता हैं। फसल के लिए 3 -4 बार खेत की जुताई करें। बढ़िया तरीके से खेत को भुरभुरा करके तैयार कर लें। सिंचाई करते समय अरबी की दो कतारों के बीज प्याज की तीन कतार लगाने से लाभ मिलता हैं। अधिक मुनाफे के लिए अरबी की उन्नत किस्मों का चुनाव करें।
उन्नत किस्मों को लगाए
अरबी की उन्नत किस्मों के नाम हैं रश्मि, इंद्र, श्री पल्लवी। साथ ही मुक्ता काशी, राजेंद्र अरबी, सी-9, सी -135, और फैजाबादी जैसी किस्में 120 से 150 दिनों में तैयार हो जाती हैं। जिसे किसान लगाकर अच्छी आमदनी कर सकते हैं।
आखिरी जुताई से पहले एक हेक्टेयर खेत में 100 -150 क्विंटल गोबर की खाद डालें और मिट्टी को पोषण प्रदान करें । इसमें 80 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस मिट्टी में मिलाएं।
गर्मी और बारिश दोनों मौसमों कर सकते हैं खेती
अरबी की विकसित किस्मों के साथ गर्मी और बारिश दोनों मौसमों में इसकी खेती की जाती हैं। इसलिए अरबी की बुवाई फरवरी और जून में करनी चाहिए। साथ ही कतारों में इसकी बुवाई कर सकते हैं। जिसमें पौधे से पौधे की दूरी 30सेमी.और कतार से कतार की दूरी 45 सेमी.रखें।
7-8 दिन के बीच करें सिंचाई
अरबी की अच्छी पैदावार के लिये मिट्टी में नमी बनाये रखना बेहद जरूरी है, इसलिये 7-8 दिन के बीच में सिंचाई का काम करते रहें। मानसून में अरबी की फसल को कम ही पानी की जरूरत होती है, लेकिन बारिश कम होने पर 15-20 दिन में शाम के समय हल्की सिंचाई करें।
4 से 5 महीने तैयार हो जाती है फसल
अरबी की बुवाई के बाद 4 से 5 महीने में इसकी फसल तैयार हो जाती है। अरबी की उपज इसकी किस्मों पर आधारित होती है। लेकिन आमतौर पर अरबी की एक हेक्टेयर खेती से 250 से 300 क्विंटल तक की उपज ली जा सकती है।