दुनिया भर के बाजार में बासमती चावल का दबदबा बढ़ रहा है। पिछले साल के मुकाबले इस बार निर्यात में 6254 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है। जबकि कीमत पहले से ज्यादा है। जानकारों का अनुमान है कि इस साल मार्च तक अगर इसका निर्यात 45,000 करोड़ रुपये के पार चला जाता है तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। विदेशी बाजारों में हमारा प्रीमियम चावल की इतनी मांग है कि कोई भी इसके आसपास नहीं रहता है। वर्ष 2022-23 के दौरान कुल कृषि निर्यात में बासमती चावल की हिस्सेदारी 17.4 प्रतिशत थी, जिसके इस वर्ष और बढ़ने की उम्मीद है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एपीडा के एक अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2023-24 के अप्रैल से दिसंबर की बात करें तो इस दौरान हमने 35,42,875 मीट्रिक टन बासमती का निर्यात किया। इससे हमें 32,845.2 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा मिली है। इसी अवधि के दौरान 2022-23 में भारत ने 26590.9 करोड़ रुपये के बासमती का निर्यात किया। जबकि 2021-22 की वर्तमान अवधि में 17689.3 केवल करोड़ों रुपये का निर्यात किया गया। बासमती की खेती बढ़ाने में अहम योगदान देने वाले पूसा के निदेशक डॉ. अशोक सिंह ने उम्मीद जताई है कि इस साल मार्च तक निर्यात 45000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।
ऊंची दरों के बावजूद बढ़ा निर्यात
वर्ष 2021-22 के दौरान निर्यात सौदे मात्र 868 डॉलर प्रति टन के भाव पर हो रहे थे और चालू वर्ष (2023-24) में भारत को 1121 डॉलर प्रति टन की दर मिल रही है। कीमतों में वृद्धि के बावजूद, यदि हम अप्रैल से दिसम्बर की अवधि में पिछले एक वर्ष से तुलना करें, तो हमने 3,45,521 टन अधिक बासमती चावल का निर्यात किया है। वर्ष 2022-23 के दौरान हमने अप्रैल-दिसंबर के दौरान, निर्यात 1044 अमेरिकी डॉलर प्रति टन की कीमत पर किया गया था। यानी कीमत पिछले साल की तुलना में 77 डॉलर प्रति टन की बढ़ोतरी है।
यहां तक कि एमईपी की दुश्मनी भी नहीं रुक सकी
26 अगस्त, 2023 को केंद्र सरकार ने बासमती चावल के निर्यात पर $1200 प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) लगाया.उद्योग के कड़े विरोध के बाद 26 अक्टूबर को इसे घटाकर 950 डॉलर कर दिया गया था। यानी दो महीने तक बासमती का निर्यात 1200 डॉलर प्रति टन से कम कीमत पर नहीं किया गया। इसके बावजूद इन दो महीनों यानी सितंबर-अक्टूबर 2023 के दौरान भारत ने 5.99 लाख मीट्रिक टन चावल का निर्यात किया। जबकि 2022 के इन्हीं दो महीनों में 5.34 लाख टन से कम बासमती का निर्यात हुआ और तब 1200 डॉलर का बैरियर नहीं लगा। वाणिज्यिक खुफिया एवं सांख्यिकी महानिदेशालय (डीजीसीआईएस) ने इन आंकड़ों की पुष्टि की है। बाजार के जानकार बताते हैं कि गैर-बासमती सफेद चावल पर प्रतिबंध की वजह से बासमती बाजार में तेजी आ रही है।
बासमती की खेती केवल दो देशों में की जाती है
बासमती चावल की खेती दुनिया के सिर्फ दो देशों में की जाती है। इसका सबसे बड़ा शेयरधारक भारत है। जहां सात राज्यों में बासमती चावल का उत्पादन होता है। इन सात राज्यों को बासमती चावल का जीआई टैग मिला है। पूरे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, पश्चिमी यूपी (30 जिले), दिल्ली, उत्तराखंड और जम्मू के कठुआ और सांबा में इसकी खेती को सरकार द्वारा मान्यता दी गई है। इन क्षेत्रों में 60 लाख टन बासमती चावल का उत्पादन होता है। इसका मतलब है कि कुल चावल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी केवल 4.5 प्रतिशत है।
महंगा होने के बाद भी मार्केट में है डिमांड
महंगा होने के कारण यह खास लोगों का चावल बन जाता है। इसलिए यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस में नहीं दिया जाता है। अधिकांश उत्पादन निर्यात किया जाता है। पाकिस्तान बासमती का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। इसकी खेती के लिए कानूनी रूप से केवल 14 जिले तय हैं। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में वे भारत को काफी नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं। वह भारतीय बासमती की कई किस्मों के बीज चुराता है और उनकी खेती करता है।