दुनिआ में इको फ्रेंडली प्रोडक्ट की मांग तेजी से बढ़ रही। भारत में भी इस क्षेत्र में काफी फोकस किया जा रहा है। देश के युवा भी नए नए तरीके इजाद कर प्लास्टिक के लिए विक्लप तलाश रहे है। बिहार का एक युवा ने भी मक्के के छिलके से कुछ ऐसा ही कमाल कर दिया है की आने वाले समय में हम प्लेट, कटोरी, थाली ,पत्तल,बैग सहित अन्य कई चीजों के लिए प्लास्टिक पर डिपेंड नहीं रहेंगे।
बिहार में धान और गेंहूं के बाद मक्के की खेती अधिक की जाती है। मक्के की डिमांड भारत ही नहीं बल्कि विदेश में भी है। पोल्ट्री व्यवसाय में भी मक्के की मांग रहती है। लेकिन बात छिलकों की करें तो इसका उपयोग कम ही होता है। लेकिन बिहार के छोरे ने मक्के के छिल्केसे कई सारे प्रोडक्ट की निर्मिति कर ये साबित कर दिया है की देश के युवा किसी से कम नहीं है।
पेशे से इंजीनियर मोहम्मद नाज ओजैर मुजफ्फरपुर के रहनेवाले है। मोहम्मद नाज को मक्के के छिलके से बनने वाले प्रोडक्ट का पेंटेंट भी मिल चूका है। मक्का के छिलके से उन्होंने प्लेट ,कटोरी ,थाली ,पत्तल ,बैग सहित कई सारे उत्पाद बनाए है। अगले महीने ही भारत सरकार से मोहम्मद नाज को प्रमाणपत्र भी दिया जायेगा।
कैसे हुई शुरुआत
हैदराबाद के जिस इंजीनियरिंग कॉलेज में मोहम्मद नाज़ ओजैर ने एमटेक की पढ़ाई पूरी की उसी कॉलेज में छह महीने प्राध्यापक के रूप में काम किया। लेकिन कुछ अलग करने की चाह के कारण वह 2016 में घर वापस आए। जहां उन्होंने ने देखा कि मक्का का उपयोग तो लोग करते हैं लेकिन उसका छिलका बेकार समझ कर फेंक देते थे। जिसके बाद मोहम्मद नाज ने इससे कुछ अलग प्रॉडक्ट बनाने का निर्णय किया। मोहम्मद नाज ओजैर कहते है कि उन्होंने मक्के से पहले पपीता, केला, बांस के पत्ते से भी प्रॉडक्ट बनाये हैं। हालांकि इसमें ज्यादा सफलता नहीं मिली।
मोहम्मद नाज का कहना है कि जब घरवालों को पता चला कि वे मक्के कि छिलकों से प्रोडक्ट बनाने वाला हैं तो घरवालों ने उन्हें पागल कहा लेकिन मोहम्मद कहते हैं की मुझे भरोसा था कि में कुछ अच्छा कर सकता हूँ और मैंने छिलकों से प्लेट ,पत्तल ,कटोरी सहित अन्य उत्पाद बनाने शुरू कर दिए और इसमें मुझे सफलता मिली। पेंटेंट के लिए मार्च 2019 में आवेदन किया जिसके बाद इस साल फरवरी में बीस साल के लिए पेंटेंट प्रमाण पत्र मिला।
सिंगल यूज प्लास्टिक के रेपर की जगह मक्के के छिलके
मोहम्मद बतातें है की आने वाले दस सालों में मक्के के छिलके से चॉकलेट,बिस्कुट,साबुन सहित अन्य छोटे सिंगल यूज प्लास्टिक के रेपर की जगह मक्के के छिलके के रेपर उपयोग में लाये जायेंगे। उन्होंने आगे बताया मक्के की प्लेट बनाने में करीब पांच से छह पत्ते लगते है। वहीं इससे बनाने के लिए सबसे पहले पत्ते को ऊपर और नीचे से एक एक इंच काट देते है। जिसके बाद यह तीन से चार इंच तक चौड़े आकार में हो जाता है। पहले फेविकोल की मदद से प्लेट बनाते थे मगर अब डाई की मदद से प्लेट बनाते हैं।