भारत के हर घर में गरम मसलों का इस्तेमाल किया जाता है। दालचीनी न सिर्फ हमारे खाने का स्वाद बढ़ाती है बल्कि हमारे इम्यून सिस्टम को भी बूस्ट करती है। हालांकि दालचीनी की पैदावार के मामले में भारत काफी पीछे है। देश में इस्तेमाल होने वाली दालचीनी का 90 फीसदी हिस्सा आयात करना पड़ता है। भारत में केवल 10 फीसदी ही दालचीनी की पैदावार होती है।
दालचीनी से जुड़ी देश की जरूरत को पूरा करेगा हिमाचल
दालचीनी के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए कई तरह के रिसर्च चल रहे हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश इस मामले में बहुत तेजी से काम कर रहा है। चार साल की रिसर्च के बाद दावा किया जा रहा है कि अकेले हिमाचल प्रदेश ही दालचीनी से जुड़ी देश की जरूरत को पूरा कर सकता है।
श्रीलंका और वियतनाम से आयात की जाती है दालचीनी
देश में 50 हजार टन तक दालचीनी की खपत है। इसमे से 45 हजार टन दालचीनी श्रीलंका और वियतनाम समेत दूसरे देशों से आयात की जाती है। दालचीनी मुख्या तौर पर दक्षिण भारत में उगाई जाती है। कोस्टल एरिया में दालचीनी की खेती की जाती है। खेती के लिए 25 से 30 डिग्री टेम्प्रेचर जरुरी है।
दक्षिण भारत में 5 हजार टन उत्पादन
इन राज्यों में करीब पांच हजार टन तक इसका उत्पादन होता है। हालांकि हिमाचल के ठंडे वातावरण में पहली बार दालचीनी की खेती की जा रही है। अगर ये प्रयोग सफल रहा तो आने वाले समय में भारत को बाहरी देशों से दालचीनी का आयत नहीं करना पड़ेगा।
चार साल से चल रही है रिसर्च
हिमाचल प्रदेश में इसकी खेती के लिए पिछले चार साल से रिसर्च चल रही है। रिसर्च के दौरान हिमाचल प्रदेश के पांच शहरों में दालचीनी के पौधे लगाए गए हैं। इसमें ऊना, बिलासपुर, कांगड़ा और सिरमौर शामिल है। इंस्टीट्यूट में भी कई पौधे लगाए गए हैं। इंस्टीट्यूट ने 10 हजार पौधे किसानों को दिए थे। यह पौधे केरल से मंगाए गए थे। इसका पौधा चार साल बाद दालचीनी का उत्पादन देने लगता है।