कर्नाटक में किसानों ने धान, ज्वार और अरहर समेत कई फसलों से दूरी बनानी शुरू कर दी है। असल में कर्नाटक के आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है। कहा जा रहा है कि कर्नाटक में धान, ज्वार, अरहर और मूंगफली सहित प्रमुख खाद्य फसलों की खेती में गिरावट आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि किसान अब उन फसलों की ओर रुख कर रहे हैं जो कम लागत पर अधिक रिटर्न देती हैं। वहीं, फसल चक्र में बदलाव का मुख्य कारण सूखा भी माना जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, धान, ज्वार और अरहर सहित आवश्यक फसलों की खेती में गिरावट आई है, जबकि कपास, सोयाबीन, हरे चने, मक्का, चना और गन्ने का रकबा बढ़ा है। क्योंकि बाजार में मांग ज्यादा होने के कारण किसान अब इन नगदी फसलों की तरफ जा रहे हैं।
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल के मुकाबले इस साल कुछ फसलों का उत्पादन भी घटा है, क्योंकि खेती का रकबा घट गया है। असल में किसानों को इन फसलों से आय नहीं मिल रही है। जानकारी के मुताबिक वर्ष 2022-23, के दौरान कर्नाटक में कुल 79.09 लाख हेक्टेयर में खाद्य फसलों की खेती की गई, 143.56 लाख टन का उत्पादन हुआ। वहीं, 2023-24 में 70.59 लाख हेक्टेयर में खेती की गई, जबकि उत्पादन 112.32 लाख टन था।
यह इन फसलों का क्षेत्र है
खास बात यह है कि कर्नाटक में लगभग सभी अनाज, दलहन, तिलहन और व्यावसायिक फसलों की खेती की जाती है। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, खरीफ, रबी और गर्मी के मौसम (2018-19 से 2022-23) में कृषि फसलों की खेती का औसत रकबा 111.92 लाख हेक्टेयर था। इसमें 44 फीसदी जमीन पर अनाज, 29 फीसदी पर दलहन, 10 फीसदी पर तिलहन, 7 फीसदी पर कपास, 9 फीसदी पर गन्ना और एक फीसदी जमीन पर तंबाकू था।
इन फसलों की होती है खेती
विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि किसान उन फसलों को चुन रहे हैं जिन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है। साथ ही खेती में आसानी होती है और कम निवेश में अधिक मुनाफा होता है। बेंगलुरु के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार एबी पाटिल ने कहा कि किसान ऐसी फसलों को चुन रहे हैं जिन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है, फसल के लिए कम दिन होते हैं। जानकारों का कहना है कि किसान पिछले कुछ वर्षों से सूखे के कारण संकट में हैं और वे लागत भी वसूल नहीं कर पाए हैं।
सरकार के लिए अच्छा संकेत नहीं
जानकारों का कहना है कि अब किसान उन फसलों को चुन रहे हैं जिनका बाजार भाव अधिक है। अगर किसानों का यह रुझान जारी रहता है तो, यह अच्छा संकेत नहीं होगा क्योंकि किसान कुछ फसलें नहीं उगाएंगे, महंगाई बढ़ेगी और सरकार को राजस्व नहीं मिलेगा। अधिकारियों ने कहा कि अगर सरकार ऐसी फसलों के लिए सब्सिडी देती है, तो किसान उन्हें उगाने का विकल्प चुनेंगे। उन्होंने कहा, ‘हम यह भी देख रहे हैं कि कुछ फसलों की कीमतें बढ़ रही हैं क्योंकि मांग तो है लेकिन किसान उन्हें उगा नहीं रहे हैं।