ब्रिटेन में ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय (यूईए) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक टीम ने हिमालय क्षेत्र में जलवायु के बारे में नए निष्कर्षों का खुलासा किया। इस रिसर्च के अनुसार यदि वैश्विक तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है तो हिमालय क्षेत्र के 90% हिस्से में एक वर्ष से अधिक समय तक सूखा पड़ सकता है। इस साल देश के कई हिस्से सूखे का सामना कर रहे हैं और इसका सीधा असर हिमालय पर पड़ने की संभावना है।
पेरिस समझौते के नियमों का पालन
यह शोध ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया था। इसके निष्कर्ष क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित हुए थे। शोधकर्ताओं का यह भी दावा है कि अगर भारत वैश्विक तापमान वृद्धि को कम करने के लिए पेरिस समझौते का पालन करता है, तो देश में गर्मी 80% तक कम हो जाएगी।
क्या है पेरिस समझौता
पेरिस समझौते में वैश्विक तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य रखा गया था। शोधकर्ताओं ने भारत के साथ-साथ ब्राजील, चीन, मिस्र, इथियोपिया और घाना इन आठ देशों पर संयुक्त अध्ययन किया है।
खतरे से बचा जा सकता है
भारत में हिट स्ट्रोक के बढ़ते जोखिम से बचा जा सकता है। ग्लोबल वार्मिंग को 3 डिग्री सेल्सियस की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करके पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्यों का पालन करके इस गर्मी के जोखिम से संभवतः बचा जा सकता है। शोध के मुताबिक, अगर 3-4 डिग्री सेल्सियस तापमान में बढ़ोत्तरी होती है, तो भारत में पॉलीनेशन यानी परागण में आधे की कमी हो जाएगी। 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर इसमें एक चौथाई की कमी आएगी। 3 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से खेती पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। देश में मौजूद आधा खेती का इलाका सूख जाएगा।
सूखे से कई देश होंगे बेजार
यदि वैश्विक तापमान तीन डिग्री बढ़ जाता है, तो भारत सहित उपरोक्त प्रत्येक देश में एक वर्ष से लेकर तीस वर्ष तक का गंभीर सूखा पड़ सकता है। देश के 90 फीसदी हिमालय क्षेत्र को भी सूखे का सामना करना पड़ सकता है। अगर तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोका जाता है, तो खेती वाली भूमि को सूखे से बचाया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि 3 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने के साथ कृषि भूमि के सूखे की चपेट में आने की संभावना में बहुत बड़ी वृद्धि हुई है। अध्ययन किए गए प्रत्येक देश में 50 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि 30 साल की अवधि में एक वर्ष से अधिक समय तक गंभीर सूखे के संपर्क में रहने का अनुमान है।
छह देशों पर मंडरा रहा है खतरा
हालाँकि, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से कृषि भूमि पर सूखे का जोखिम 21 प्रतिशत (भारत) और 61 प्रतिशत (इथियोपिया) के बीच कम हो जाएगा और साथ ही नदी से आने वाली बाढ़ के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान में भी कमी आएगी। ऐसा तब होता है जब नदियाँ और झरने अपने किनारे तोड़ देते हैं और पानी निकटवर्ती निचले इलाकों में बह जाता है। शोधकर्तांओं के अनुसार समुद्र के स्तर में वृद्धि से जुड़ी आर्थिक क्षति तटीय देशों में बढ़ने का अनुमान है, लेकिन अगर तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रही तो यह और धीरे-धीरे बढ़ेगी।
बढ़ती आबादी भी है तापमान वृद्धि का कारण
शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि बढ़ती आबादी को देखते हुए देश के कई हिस्सों में तापमान में डेढ़ डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी का खतरा है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए और अधिक प्रयास की आवश्यकता है, क्योंकि वर्तमान में वैश्विक स्तर पर जो नीतियां चल रही हैं, उनके परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना अधिक है।