क्या देश में शुरू होने वाला है खाद्यान संकट? आयात किया जा सकता है गेहूं

wheat procurement

रबी का मौसम अपने चरम पर है। इस बार रबी सीजन में चुनावी रंग भी बढ़ गया है। उदाहरण के लिए, कई राज्यों में किसान अपनी खेती के साथ-साथ राजनीति की गर्मी का भी आनंद ले रहे हैं। इस रबी सीजन में छत्तीसगढ़ में एक चुनावी रैली में पीएम मोदी ने अगले 5 साल तक देश की 80 करोड़ आबादी को मुफ्त गेहूं और चावल की गारंटी दी है। जिसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। पीएम मोदी की इस गारंटी के अलावा कई राज्यों के किसानों ने रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं की बुआई पूरी कर ली है। वहीं कई राज्यों के किसान गेहूं की बुवाई में पिछड़ रहे हैं।

इन किसानों को देखते हुए करनाल स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ व्हीट एंड जौ रिसर्च यानी आईआईडब्ल्यूबीआर को 25 दिसंबर तक गेहूं की बुआई पूरी करनी है। यह पूरी कवायद इसलिए है ताकि देश-दुनिया की एक बड़ी आबादी की थाली में प्रोटीन का मुख्य आधार रोटी की मात्रा हो। वास्तव में, भारत गेहूं उत्पादन के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों में से एक है। भारत में रबी सीजन में गेहूं उगाया जाता है, जो देश की 140 करोड़ आबादी के साथ-साथ दुनिया के कई देशों के नागरिकों का पेट भरने के लिए मुख्य आहार है।

गेहूं बफर स्टॉक और गेहूं की खुले बाजार में बिक्री

गेहूं के स्टॉक और कीमतों को कम करने के उद्देश्य से गेहूं की खुले बाजार में बिक्री देश में गेहूं संकट की ओर इशारा कर रही है। दरअसल गेहूं के मामले में भारत दुनिया के सामने एक ताकत है, लेकिन पिछले दो सालों से गेहूं भारत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। मार्च 2022 में समय से पहले गर्मी के कारण गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ था, तब से गेहूं का निर्यात बंद हो गया है। वहीं, पिछले साल अप्रैल में बामोसम बार से गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ था। हालांकि सरकार दावा कर रही है कि गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है, लेकिन गेहूं का बफर स्टॉक 6 साल से नीचे चल रहा है।

नवंबर में गेहूं का बफर स्टॉक 210 लाख मीट्रिक टन है। यह वह अवधि है। जिसमें गेहूं की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। साथ ही यह चुनावी साल है। ऐसे में सरकार लगातार कीमत को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है, जिसके तहत ओपन मार्केट सेल के तहत गेहूं उपलब्ध कराया जा रहा है, जिसके लिए बफर स्टॉक का इस्तेमाल किया जाना है। ऐसे में गेहूं का बफर स्टॉक और कम हो सकता है, जो चिंता का विषय बना हुआ है।

बुआई कम, अल नीनो का असर

गेहूं की बुआई जारी है, लेकिन सूखे ने गेहूं की बुआई पर भारी असर डाला है। वास्तव में, अक्टूबर में सामान्य से कम एसएचआई दर्ज किया गया था। वहीं, नवंबर में बार में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। तापमान गर्म होने से जहां गेहूं की बुआई प्रभावित हुई है। पिछले साल की तुलना में दिसंबर के पहले सप्ताह में रकबे में 4 फीसदी की कमी आई है। माना जा रहा है कि इस साल गेहूं की बुआई का रकबा पिछले साल के मुकाबले 4 से 5 फीसदी कम रह सकता है। वहीं, इस साल को अल नीनो का साल घोषित किया गया है। माना जा रहा है कि फरवरी के बाद अल नीनो का असर तेज हो जाएगा।

गर्मी के कारण उत्पादन में आयी थी गिरावट

2022 में मार्च में अत्यधिक गर्मी के कारण गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ था। अप्रैल 2023 में बेमौसम बारिश ने गेहूं पर कहर बरपाया था। अब जबकि 2024 को अल नीनो का साल कहा जा रहा है तो गेहूं का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है।

आयात की बात और रूस से क्या उम्मीद की जाए

सरकार ने गेहूं आयात पर 40 फीसदी ड्यूटी लगा दी है, लेकिन जिस तरह से गेहूं के मोर्चे पर खबरें सामने आ रही हैं, वह गेहूं आयात की ओर इशारा कर रही है। बुआई का रकबा कम होने के साथ ही अल नीनो की वजह से उत्पादन शुरू होने का भी अनुमान है। देश को गेहूं संकट से बचाने के लिए गेहूं आयात योजना यह आपके सामने है। ऐसे में रूस से गेहूं का आयात करना भारत के लिए फायदेमंद होगा। भारत के बाद रूस शीर्ष गेहूं उत्पादक देशों में से एक है। इसलिए यह दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक भी है।

रूस-यूक्रेन की वजह से यूरोप यिन यिन रूस से गेहूं का आयात नहीं कर रहा है। इसलिए पिछले सीजन में रूस में गेहूं की बंपर पैदावार हुई है। तो वहीं भारत के साथ रूस के संबंध भी बेहतर हैं। बेशक अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की जबरदस्त मांग है, लेकिन संभावना है कि भारत अपने कूटनीतिक कौशल के दम पर रूस से कम कीमत पर गेहूं का आयात कर सकता है, जो भारत में संभावित गेहूं संकट की मार न पड़ने का समाधान हो सकता है।

 

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