भारत सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर लगे न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) को समाप्त करने का निर्णय लिया है। इससे पहले, इस प्रकार के चावल के निर्यात पर 490 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम मूल्य लागू था, जिसे अब हटा दिया गया है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब देश में चावल की पर्याप्त उपलब्धता है और खुदरा कीमतें नियंत्रण में हैं। इसके साथ ही, यह निर्णय किसानों की आय बढ़ाने और निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लिया गया है।
चावल निर्यात पर लगा प्रतिबंध और उसका हटना
गौरतलब है कि सरकार ने 20 जुलाई, 2023 को गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था, जिसके तहत गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात को भी रोक दिया गया था। इस प्रतिबंध का उद्देश्य घरेलू बाजार में चावल की उपलब्धता को बनाए रखना और कीमतों को नियंत्रित करना था। हालांकि, सितंबर 2023 में सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल पर लगे पूर्ण प्रतिबंध को हटा लिया था, लेकिन उस समय निर्यात के लिए 490 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम मूल्य निर्धारित किया गया था।
अब, 2024 में, सरकार ने इस Minimum Export Price को भी हटाने का निर्णय लिया है, जिससे चावल के निर्यात में आसानी होगी। इस निर्णय के बाद भारत से गैर-बासमती सफेद चावल का निर्यात अंतरराष्ट्रीय बाजारों में फिर से शुरू हो सकेगा, जिससे किसानों और निर्यातकों को फायदा होगा।
विदेश व्यापार महानिदेशालय की अधिसूचना
विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने एक अधिसूचना जारी कर बताया कि गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य की आवश्यकता को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया गया है। इस अधिसूचना के बाद, चावल के निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी खेप बेचने की प्रक्रिया में सहूलियत होगी। इससे वैश्विक बाजार में भारत के चावल की मांग पूरी करने में मदद मिलेगी।
निर्यात प्रतिबंध और विशेष छूट
हालांकि, निर्यात पर प्रतिबंध के दौरान भारत सरकार ने कुछ देशों को विशेष छूट दी थी। मालदीव, मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और अफ्रीका जैसे मित्र देशों को चावल की खेप भेजने की अनुमति दी गई थी। यह निर्णय इन देशों के साथ भारत के विशेष संबंधों और वहां के नागरिकों की खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए लिया गया था।
इसके अलावा, भारत के चावल निर्यात में एक प्रमुख भूमिका यह भी रही कि देश में चावल का पर्याप्त स्टॉक था। सरकारी गोदामों में चावल की उपलब्धता बनी रही और घरेलू बाजार में कीमतें नियंत्रण में थीं। इसलिए, सरकार ने निर्यात की सीमाओं में कुछ ढील देने का निर्णय लिया।
चावल निर्यात के आंकड़े
भारत ने चालू वित्त वर्ष 2023-24 के अप्रैल से अगस्त महीने तक गैर-बासमती सफेद चावल का 20.1 करोड़ डॉलर मूल्य का निर्यात किया है। पिछले वित्तीय वर्ष में, 2022-23 के दौरान यह निर्यात 85 करोड़ 25.2 लाख डॉलर तक पहुंचा था। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय चावल की वैश्विक बाजार में काफी मांग है, विशेषकर उन देशों में जहां बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी रहते हैं।
गैर-बासमती सफेद चावल का निर्यात मुख्य रूप से उन देशों में किया जाता है, जहां भारतीय मूल के लोग रहते हैं, जैसे कि संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कतर और अफ्रीका के विभिन्न देश। इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर भी भारतीय चावल की गुणवत्ता और पोषण को लेकर काफी मांग रहती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध और आपूर्ति पर असर
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण वैश्विक खाद्यान्न आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई है। इस युद्ध के चलते कई देशों में खाद्य सुरक्षा को लेकर चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं। ऐसे में, भारत जैसे देशों के लिए यह एक अवसर है कि वे अपनी कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाकर अंतरराष्ट्रीय बाजार की जरूरतों को पूरा कर सकें। गैर-बासमती सफेद चावल की अंतरराष्ट्रीय मांग को देखते हुए, यह कदम भारत की निर्यात क्षमता को मजबूत करेगा।
भारत से चावल का निर्यात शुरू होने से उन देशों को राहत मिलेगी, जहां खाद्य आपूर्ति में कठिनाइयां आ रही थीं। साथ ही, भारतीय निर्यातकों के लिए यह आर्थिक रूप से लाभकारी होगा, क्योंकि वैश्विक बाजार में चावल की मांग में वृद्धि हुई है।
किसानों और निर्यातकों को लाभ
सरकार के इस कदम से भारतीय किसानों और चावल निर्यातकों को सीधा लाभ मिलेगा। चावल उत्पादन करने वाले किसानों को अब उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा, और निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में नए अवसर प्राप्त होंगे। इसके अलावा, चावल की कीमतों को नियंत्रित करने और विदेशी बाजारों में इसकी स्थिर आपूर्ति बनाए रखने के लिए यह कदम महत्वपूर्ण साबित होगा।
सरकार की ओर से इस तरह के फैसले न केवल घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देते हैं, बल्कि किसानों की आय में वृद्धि करने और कृषि क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में भी मददगार होते हैं। भारत Rice का प्रमुख निर्यातक देश है, और इस निर्णय के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की स्थिति और मजबूत होगी।