सरसों के तेल पर अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने बैन लगा दिया है। बैन की वजह है इसमें मौजूद इरुसिक एसिड और ग्लूकोसाइनोलेट्स। इन देशों का मानना है की इन दो तत्वों की वजह से दिल की सेहत पर बुरा असर पड़ता है।1950 के दशक में किए गए एक शोध में सरसों के तेल में इरुसिक एसिड और ग्लूकोसाइनोलेट्स पाया गया था, जो इसके स्वाद में तेजी का प्रमुख गुण है। बीते कुछ सालों में हुए चूहों पर किए एक शोध में ये पाया गया है कि दोनों तत्वों की अधिकता की वजह से चूहों में दिल की बीमारियां हो सकती हैं।
तेल के इस्तेमाल से दिल की सेहत पर बुरा असर
हालांकि मुनष्य पर इसका क्या प्रभाव होगा, इस पर अभी स्पष्टता नहीं है, लेकिन अमेरिका के शीर्ष खाद्य संंस्थान एफडीए ने सरसों के तेल पर बैन लगा दिया है, जिसके तहत सरसों के तेल का त्वचा पर बाहरी प्रयोग तो किया जा सकता है, लेकिन सरसों तेल का प्रयोग खाद्य तेल के तौर पर प्रतिबंधित किया गया है। इसी तरह कनाड़ा सहित यूरोप के कई देशों में सरसों के तेल पर बैन लगाया गया है। हालांकि भारत की और से कम इरुसिक एसिड वाले सरसों के बीज को मंंजूरी दिलाने के प्रयास जारी हैं। सरसों के तेल पर बैन से सरसों उत्पादक किसानों की चिंता बढ़ गई है।
साजिश का शिकार बन रहा है सरसों का तेल
अमेरिका और यूरोपीय संघ की मुख्या फसल सरसों हैं बावजूद इसके इन देशों में सरसों के तेल का इस्तेमाल खाना बनाने में नहीं किया जाता। यूरोप अमेरिका के बैन के फैसले ने इसपर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। ये देश सरसों के तेल का इंम्पोर्ट नहीं करते। इन देशों द्वारा बैन की वजह समझ नहीं आ रही है। अमेरिका और यूरोप के देशों और निवासियों का सरसों के तेल से कोई संबंध नहीं है। ऐसे में सरसों के तेल पर बैन लगाने के फैसले की मंशा को शक की नजर से देखना लाजिमी बनता है।
सोयाबीन तेल की खपत बढ़ाने की अमेरिकन निति
अमेरिका और यूरोप के देशों में सरसों के तेल पर बैन को लेकर किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि ये पहली बार नहीं है कि जब भारत में सरसों किसी साजिश का शिकार हुई हो। जाट कहते हैं कि बीते दशकों में सरसों के प्रयोग से ड्राप्सी बीमारी होने का झूठ फैलाया गया। जिसके बाद सरसों तेल भारत में ही बदनाम हो गया। इसकी बिक्री कम हो गई। इस वजह से कई सरसों मिलें बंद हुई, किसानों के कम दाम मिले और सरसों का रकबा कम हुआ। जाट कहते हैं कि 1985 तक भारत खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर था। जाट आगे कहते हैं कि अमेरिका में सोयाबीन की खेती होती है और दुनियाभर में सोयाबीन के तेल की खपत बढ़ाने की नीतियां अमेरिका की रही हैं। अमेरिका की नीतियां उनके उत्पादन के खपत के आधार पर बनती है।
भारतीय कृषि वैज्ञानिक सरसों पर हुई शाजिश का करे खंडन
सरसों अनुंसधान निदेशालय के डायरेक्टर डॉ.पीके राय इस विषय पर कहते हैं कि सरसों तेल का प्रयोग भारत में प्राचीन समय से हो रहा है। उत्तर भारत से लेकर पूर्वोत्तर तक सरसों तेल का प्रयोग बड़ी मात्रा में करते हैं। पूर्व में हुई कई रिसर्च ये स्पष्ट कर चुकी हैं कि सरसों में कैंसर से लड़ने वाले गुण मौजूद हैं। वहीं मौजूदा वक्त में भारत अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए खाद्य तेल इंपोर्ट करता है। ऐसे में अगर अमेरिका और यूरोप की तरफ से सरसाें के तेल पर जो बैन लगाया गया है, उसका भारत के किसानों पर कुछ असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि भारत से सरसों एक्सपोर्ट नहीं होता है, लेकिन जिस तरीके से अमेरिका और यूरोप में प्रयोग ना होने के बाद भी सरसों तेल के प्रयाेग पर बैन लगाया है ऐसे में जरूरी है कि भारतीय कृषि वैज्ञानिक आगे आएं और सरसों के खिलाफ जो इंटरनेशल माहौल बनता हुआ दिख रहा है उसका खंडन करें।
बैन से भारत में तेल की खपत पर पड़ेगा असर
भारत के कई राज्यों में पारंपरिक तौर पर सरसों तेल का प्रयोग खाना बनाने के लिए होता है, जिसे शुद्ध तेल के तौर पर रेखांकित किया जाता है। कोरोना काल के बाद सरसों के तेल ने एक बार विश्वसनीयता पाई है, लेकिन ग्लोबल होती दुनिया में भारतीय आम जन के बीच अमेरिकी स्टैंडर्ड की स्वीकार्यता बढ़ी है। अमेरिका की मुख्य तिलहनी फसल सोयाबीन ने अपनी पैठ बनाई है। इस बात को नाकारा नहीं जा सकता है कि अमेरिका और यूरोप के देशों में लगाया गया सरसों तेल पर बैन आने वाले दिनों में आम भारतीय के मन में कई तरह के शक और सवालों को जन्म देगा। ऐसे में जरूरी है कि इस पर स्पष्टता के लिए कोशिशें की जाएं।