चुनाव लड़ने के लिए कई लोग अलग अलग तरीके अपनाते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के जांजगीर के एक उम्मीदवार ऐसे भी है जो हर बार अपना सूअर बेचकर चुनावी मैदान में उतरते हैं। इनका नाम है मायाराम नट। हालांकि चुनाव में ये कभी चार अंक तक पहुंच नहीं पाए हैं। नट के पास कोई पुश्तैनी सम्पति नहीं है, लेकिन सूअर दर्जन से भी अधिक है, जिनको बेचकर वो चुनावी मैदान में उतरते हैं । समाज के कुछ लोग उनके इस प्रयास में चंदा भी देते हैं, नट का लक्ष्य होता है की कम से कम दो लाख रुपये की व्यवस्था हो जाए जिससे वो अपना प्रचार कर सकें।
नट इस चुनाव में अपनी बहु विजय लक्ष्मी को असंख्य समझ पार्टी से मैदान में उतार रहे है। इससे पहले वो खुद भी पंचायत और विधानसभा चुनाव में शिरकत कर चुके हैं।
साल 2001 में पहली बार लड़ा था चुनाव:
जांजगीर चंपा जिले के महंत गांव के रहने वाले मायाराम नट घुमंतू समाज से तालुक रखते हैं। इनके पूर्वज बांस के डांग में करतब दिखते आ रहे हैं। मायाराम नट ने साल 2001 से चुनाव लड़ने का सिलसिला शुरू किया। मायाराम नट ने पामगढ़ विधानसभा एससी रिजर्व सीट से चुनाव लड़ा था। मायाराम ने बताया कि वे 2001 में पंचायत चुनाव लड़ कर पंच बने और जिला पंचायत सदस्य के पद से चुनाव लड़ना शुरू किया। जिला पंचायत में क्षेत्र क्रमांक 2 से चुनावी मैदान में उतर कर कमला देवी पाटले का प्रतिद्वंदी बनाया था। जो की अब दो बार सांसद बन गई हैं।
नहीं है कोई पुश्तैनी संपत्ति:
मायाराम नट पिछले काफी समय से हर विधानसभा, पंचायत और लोकसभा के साथ चुनाव लड़ते हुए आ रहे है, एक बार उन्होंने अपनी बहु विजयलक्ष्मी को भी मैदान में उतारा था और उन्हें जीत हासिल हुई थी। मायाराम ने बताया की उनके पास कोई पुश्तैनी धन न होने के बाद भी वो सूअर बेचकर और करतब दिखाकर अपना प्रचार करते है।
हर बार चुनाव के लिए बेचते है सूअर:
मायाराम चुनाव लड़ने के लिए हर बार सूअर बेचते है और फिर उन्ही पैसो से चुनाव लड़ते है। उन्होंने बताया की उनके पास 100 से भी ज़्यादा छोटे बड़े सूअर है। जिसमे बड़े की कीमत 10000 तो वही छोटे कीमत 3 से 5 हज़ार तक मिल जाती है।
क्या है चुनाव लड़ने का मकसद:
मायाराम नट मानते है की लोगों में उनके विचार के प्रति सहानभूति है, वो केवल दिखावे के लिए चुनाव नहीं लड़ते बल्कि किसानो के लिए कुछ करना चाहते है, इसलिए वो हर बार चुनावी मैदान में उतरते हैं।