ख़ास है ओडिशा का यह मशरूम विलेज, यहां का हर किसान है करोड़पति

अक्सर अच्छी आमदनी के लिए गावं के लोग शहर का रुख करते हैं। खेती बाड़ी छोड़ नौकरी करने लगते हैं, लेकिन ओडिशा का मशरूम विलेज देशभर के युवाओं और खेती बाड़ी करने वालों के लिए एक मिसाल कायम कर रहा है। इन गावंवालों ने मशरूम की खेती से सफलता की नई कहानी लिख डाली है। इस गावं में लगभग हर किसान मशरूम की खेती करता है। मशरूम की खेती से यह लोग सालाना दो करोड़ कमा रहे हैं।

सभी किसान करते हैं मशरूम की खेती 

ओडिशा के गंजम जिले में आने वाले राधामोहनपुर गांव के करीब सारे गांववासी आज मशरूम की खेती करते हैं। यहां के गांववाले करीब तीन टन ताजा धान और ऑयेस्‍टर मशरूम का उत्‍पादन करते हैं। इससे ये रोजाना करीब छह लाख रुपये तक कमा लेते हैं। अब यहां के निवासियों को रोजगार की तलाश में बहार नहीं जाना पड़ता।

सुपर सायक्लोन से बदले हालात 

ओडिशा को अक्सर समुद्री तूफानों का सामना करना पड़ता है। 1999 के सुपर सायक्लोन के बाद से यहां के लोगों की तक़दीर बदल गई कभी पान की खेती पर निर्भर रहने वाले गांववासी मशरूम की खेती करने लगे।

आंध्र प्रदेश और राज्‍य के अलग-अलग हिस्‍सों में बेचते हैं उत्पादन

गांव वाले अपने उत्‍पादों को पड़ोस के आंध्र प्रदेश और राज्‍य के अलग-अलग हिस्‍सों में बेचते हैं। मां कलुआ सेल्‍फ हेल्‍प ग्रुप के सदस्‍य झिली साहू ने बताया कि गांव में मशरूम से शुद्ध आय करीब दो करोड़ रुपये है। मशरूम से अचार बनाकर और इसे स्‍थानीय बाजार में बेचकर मुनाफा कमाया जाता है। इस अचार को जिला स्‍तरीय मेले में बेचा जाता है।

रिटायर्ड सरकारी कर्मी पटनायक ने सिखाई खेती 

इस गावं की किस्मत बदलने वाले है शख्स हैं पीके पटनायक। पटनायक एक रिटायर्ड सरकारी कर्मी हैं जिन्‍होंने साल 2005 में मशरूम की खेती शुरू की थी। पटनायक जब इस खेती में सफल हुए तो कुछ युवाओं ने भी इसमें रूचि दिखाई। पहले यहां के लोग पान की खेती पर निर्भर थे और उसे उत्‍तर प्रदेश के बड़े शहरों को निर्यात किया जाता था।

मशरूम की खेती के लिए विज्ञान का लिया सहारा 

गांव के युवाओं ने ओडिशा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्‍चर एंड टेक्‍नोलॉजी के मशरूम रिसर्च यूनिट से संपर्क किया। इनका मकसद मशरूम की खेती में जरूरी वैज्ञानिक क्षमता को जानना था। यूनिट से ट्रेनिंग मिलने के बाद छह स्‍पॉन प्रोडक्‍शन यूनिट को लगाया गया। आज इस गांव में ऐसी 17 यूनिट्स हैं। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की मदद से गांव वालों ने कॉस्‍ट इफेक्टिव उत्‍पादन सीखा और इससे उत्‍पादन में इजाफा हुआ। हिमाचल प्रदेश के सोलन में स्थित इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ मशरूम रिसर्च के डायरेक्‍टर वीपी शर्मा ने इस गांव को पिछले साल भारत का मशरूम विलेज घोषित किया गया है।

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