आज देश भर में महिला किसी भी कार्य में पीछे नहीं है। महिला किसानों का खेती बाड़ी में काफी योगदान है। केमिकल युक्त खाद लोगों की सेहत बिगाड़ रहा है। ये न सिर्फ लोगों के लिए घातक है बल्कि जमीन पर भी इसका विपरीत परिणाम हो रहा है। इसके परिणामों को देखते हुए कई किसान अपने खेतों के लिए प्राकृतिक खाद का इस्तमाल कर रहे हैं। यूपी की पूनम सिंह भी एक ऐसी महिला किसान हैं जिसने न सिर्फ केंचुआ खाद का निर्माण किया बल्कि इससे वे अच्छा खासा मुनफाभी कमा रही हैं। पूनम अपनी आसपास की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश कर रही है।
सालाना 7 से 8 लाख की कमाई
पूनम सिंह ने पूरे क्षेत्र की महिलाओं के लिए एक मिसाल कायम की है। वह पिछले 3 साल से वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन कर रही हैं और सालाना 7-8 लाख रुपये भी कमा रही हैं। पूनम बताती हैं कि 3 साल पहले हमने गांव की कुछ महिलाओं को जोड़ा और वर्मी कंपोस्ट बनाना शुरू किया। पूनम के पति 2 से 3 एकड़ में गेहूं-मटर की खेती करते हैं। लेकिन केमिकल युक्त खाद यहाँ के लोगों को बीमार कर रही थी जिसके कारण उन्होंने जैविक खेती की और अपना मन बना लिया।
पूनम ने कहा की सब से पहले उन्होंने केंचुआ खाद बनाई और उसे अपने खेतों में डाला, जिससे गेहूं फसल की पैदावार अच्छी हुई। धीरे-धीरे इसे एक व्यवसाय के रूप में विकसित करने के बारे में सोचा। पूनम ने बताया कि हमने गांव की 11 महिलाओं के साथ मिलकर केंचुआ खाद बनाना शुरू किया। जिसके बाद इसकी मांग बढ़ी और आज कम लागत में किसान वर्मी कम्पोस्ट यानी केंचुआ खाद से अच्छी फसल पैदा कर रहे हैं।
600 -700 में बिकती है 1 बोरी
महिला किसान पूनम का कहना है कि 25 किलो वर्मीकम्पोस्ट की एक बोरी 600-700 रुपये में बिकती है। उन्होंने कहा कि हम लोग प्रतिदिन 2-3 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट तैयार करते हैं और इसकी बिक्री भी काफी अच्छी होती है। वह अपने क्षेत्र के कृषि आजीविका सखी समूह से भी जुड़ी हुई हैं। जो किसानों को कृषि की नवीनतम तकनीकों से अवगत कराने का काम करती है, ताकि फसलों की अच्छी पैदावार हो और किसानों की आय दोगुनी हो सके। पूनम सिंह ने बताया कि उन्हें इस काम के लिए 20 हजार रुपये मिलते हैं। कुल मिलाकर इस महिला किसान को अच्छा मुनाफा हो रहा है।
पूनम ने बताया केंचुआ खाद बनाने का तरीका
केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है। वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है।
सुलतानपुर जिले की रहने वाली पूनम सिंह ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट यानी केंचुआ खाद का उत्पादन 6 X 3 X 3 फीट के बने गड्ढे बनाएं पहले दो से तीन इंच आकार के ईंट या पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों की तीन इंच मोटी परत बिछाएं।अब इस पत्थर के परत के ऊपर तीन इंच मोटी बालू की परत बिछाएं। इस बालू मिट्टी की परत के ऊपर अच्छी दोमट मिट्टी की कम से कम 6 इंच की मोटी परत बिछाएं।
उन्होंने बताया कि मिट्टी की मोटी परत के ऊपर पानी छिड़ककर मिट्टी को 50 से 60 प्रतिशत नम करें इसके बाद 1000 केंचुआ प्रति वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में छोड़ दें। इसके बाद मिट्टी की मोटी परत के ऊपर गोबर या उपले थोड़ी-थोड़ी दूर 8 से 10 जगह पर डाल दें तथा फिर उसके ऊपर तीन से चार इंच की सूखे पत्ते, घास या पुआल की मोटी तह बिछा दें।
45 दिनों के बाद केंचुआ खाद तैयार
सभी प्रसंस्करण हो जाने के बाद, कवरिंग ट्रे, ताड़ या नारियल के पत्तों को हटाने के बाद, पौधे के कचरे को सूखे पौधे सामग्री के साथ 60:40 के अनुपात में मिलाया जाता है और हरे पौधे की सामग्री को 2 से 3 इंच की मोटाई में फैलाया जाता है। इसके ऊपर गोबर के 8 से 10 छोटे-छोटे ढेर लगा दिए जाते हैं। गड्ढा भरने के 45 दिन बाद केंचुआ खाद तैयार हो जाती है। गोबर की खाद में पोषक तत्वों की मात्रा भी कई गुना बढ़ जाती है। पूनम सिंह ने कहा कि उन्हें समय-समय पर केवीके द्वारा आयोजित व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम में वैज्ञानिक प्रसंस्करण के साथ-साथ खाद्य विपणन उत्पादों के विभिन्न पहलुओं के बारे में नई जानकारी मिलती रहती है।