महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में नारियल का उत्पादन सबसे ज्यादा होती है लेकिन बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और व्हाइट फ्लाइज जैसे कीटों के कारण इस साल उत्पादन में 40 प्रतिशत की कमी आने की आशंका जताई जा रही है। इस वर्ष जिले में नारियल के उत्पादन में 40 प्रतिशत की कमी आई है, इसलिए सुरक्षित माने जाने वाले नारियल को लेकर उत्पादकों में चिंता का माहौल है। आम, काजू, सुपारी के बाद सुरक्षित मानी जाने वाली नारियल की फसल भी बदलते मौसम की शिकार हो गयी।
महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में अधिक उत्पादन
महाराष्ट्र में सबसे अधिक नारियल का उत्पादन सिंधुदुर्ग जिले में होता है। राज्य में 33 हजार हेक्टेयर में नारियल की खेती होती है, जिसमें से 18 हजार हेक्टेयर में खेती सिर्फ सिंधुदुर्ग जिले में होती है। हालाँकि नारियल का उत्पादन जिले के सभी हिस्सों में किया जाता है, वेंगुर्ला, कुडाल, सावंतवाड़ी, मालवन तालुका में बड़ी मात्रा में नारियल की खेती की जाती है। पौष्टिक वातावरण और कीटों और बीमारियों के न्यूनतम प्रकोप के कारण पिछले कुछ वर्षों में जिले में नारियल फसलों की खेती में वृद्धि हुई है। लेकिन वही नारियल की फसल अब बदलते पर्यावरण की भेंट चढ़ रही है।
बारिश के कारण नारियल उत्पादन में कमी
बेमौसम बारिश के कारण नारियल का उत्पादन घटा है। दरअसल, पिछले साल 6-7 जून को सिंधुदुर्ग में प्रवेश करने वाला मॉनसून 12 जून को आया था। लेकिन जिले में 23 जून को मानसून सक्रिय हुआ। अप्रैल-मई के महीनों में नारियल के पेड़ों को पर्याप्त पानी नहीं मिला। वही जिले में मानसून में देरी और 50 प्रतिशत बारिश होने के कारण नारियल के उत्पादन पर विपरित असर पड़ा।अप्रैल से जुलाई के अंत तक नारियल पर आने वाले फूलों का प्रमाण कम है। साथ ही मौसम की मार से बड़े पैमाने पर फल झड़ गए।
किसानों का कहना है कि इस दौरान नारियल के पेड़ों का आकार भी कम हो गया है। इसके अलावा नारियल पर व्हाइटफ्लाई और कोलेरा जैसी बीमारियों ने अधिक नुकसान पहुंचाया है। बदलते मौसम से सुरक्षित मानी जाने वाली नारियल की फसल भी खतरे में है। नारियल किसानों को झटका लगा है क्योंकि उत्पादन आधा हो चुका है।
क्या कहते हैं नारियल उत्पादक
नारियल उत्पादक प्रदीप प्रभु ने कहा कि एक नारियल के पेड़ पर आमतौर पर 100 फल लगते हैं। मेरा वार्षिक उत्पादन 5000 नारियल है। लेकिन इस वर्ष तीन हजार फल प्राप्त हुए। इस साल उत्पादन में बड़ी गिरावट आई है।