चिलचिलाती धूप से इंसान ही नहीं पशुओं का भी बुरा हाल है। खासकर पशुपालकों के लिए आईसीएआर ने चेतावनी जारी की है कि 55 राज्यों में खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) बीमारी पशुओं को घेर सकती है। इस बीमारी के चलते दूध उत्पादन में कमी आ सकती है। दूध, मीट, डेयरी प्रोडक्ट के एक्सपोर्ट में भी ये बीमारी सबसे बड़ा रोड़ा है। किसानों को इससे सतर्क रहने की जरुरत है वार्ना भरी नुकसान हो सकता है।
लापरवाही से जा सकती है पशु की जान
गाय-भैंस, भेड़-बकरी और सूअरों में खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) बीमारी को बहुत ही खतरनाक माना जाता है। लापरवाही बरतने पर पशुओं की जान भी जा सकती है। इस बीमारी से एक-दो देश नहीं बल्कि पूरा ही विश्व परेशान है। हालाँकि कई देशों ने इसपर काबू पा लिया है लेकिन भारत अभी भी एफएमडी फ्री जोन की कैटेगरी से बाहर है। बिना एफएमडी फ्री जोन सर्टिफिकेट के भारत अपने डेअरी प्रोडक्ट्स और मीट का एक्सपोर्ट विदेशों में बड़े पैमाने पर नहीं कर सकता है।
बरसात में अधिक फैलाती है बीमारी
एनीमल एक्सपर्ट की मानें तो एफएमडी बीमारी पशुओं के बीच बरसात के मौसम में ज्यादा देखने में आती है। लेकिन इस बार मई में इस बीमारी का प्रकोप जानवरों पर पड़ सकता है। आईसीएआर के मुताबिक झारखंड के 15 शहरों, कर्नाटक के आठ, केरल के सात, मेघालय के पांच, त्रिपुरा में चार, मणिपुर के तीन, पश्चिम बंगाल के तीन, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और यूपी के दो-दो शहरों, गुजरात, राजस्थान और नागालैंड के एक-एक शहर में एफएमडी का अटैक हो सकता है।
जानें एफएमडी के लक्षण
एफएमडी पीड़ित पशु जैसे गाय-भैंस, भेड़-बकरी और सूअरों में तेज बुखार, भूख कम लगाना, पशुओं में सुस्ती, मुंह से बहुत ज्यादा लार टपकना, मुंह में फफोले खासतौर पर जीभ और मसूड़ों पर फफोले हो जाना, पशु के पैर में खुर के बीच घाव, गाभिन पशु का गर्भपात हो जाना थन में सूजन और पशु में बांझपन जैसे लक्षण पाएं जाते हैं।
दूषित चारा और दूषित पानी से पशुओं को बचाएं
दूषित चारा और दूषित पानी पीने से पशुओं में एफएमडी रोग जल्दी फैलता है। बरसात के दौरान खासतौर पर पशु खुले में चरने के दौरान दूषित चारा-पानी खा और पी लेते हैं। खुले में पड़ी कुछ सड़ी-गली चीजें खाने से भी ये रोग फैलता है। फार्म पर नए आने वाले पशु से भी ये बीमारी लग जाती है।इसके अलावा अगर कोई पशु एफएमडी बीमारी से पीड़ित है तो उस पशु की संगत से बीमारी अन्य पशुओं में फैलाती है।
कैसे करें एफएमडी की रोकथाम
एफएमडी की रोकथाम करना बहुत आसान है। इसके लिए सबसे पहले तो अपने पशु का रजिस्ट्रेशन कराएं। उसके कान में ईयर टैग डलवाएं। किसी भी पशु स्वास्थ केंद्र पर साल में दो बार फ्री लगने वाले एफएमडी के टीके लगवाएं। टीका लगवाने के बाद इस बात का खास ख्याल रखें कि टीका लगने पर 10 से 15 दिन में पशु में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। इसलिए तब तक पशु का खास ख्याल रखें। बरसात के दौरान पशु के बैठने और खड़े होने की जगह को साफ और सूखा रखें।
पशुओं का रखें ख़ास खयाल
एनीमल एक्सपर्ट बताते हैं कि एफएमडी का कोई इलाज तो नहीं है, लेकिन कुछ जरूरी उपाय जरूर अपनाए जा सकते हैं। जैसे पीड़ित पशु को बाकी सभी पशुओं से अलग रखें। मुंह के घावों को पोटेशियम परमैंगनेट सॉल्यूशन से धोएं। इसके अलावा बोरिक एसिड और ग्लिसरीन का पेस्ट बनाकर उससे पशु के मुंह की सफाई करें। खुर के घावों को पोटेशियम सॉल्यूगशन या बेकिंग सोडा से धोएं।कोई एंटीसेप्टिक क्रीम लगाएं।