देश में एक्वापोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। एक्वाकल्चर और हाइड्रोपोनिक्स को साथ मिलाकर की जाने वाली खेती को एक्वापोनिक्स नाम दिया गया है। इस तकनीक में मछली पालन और सब्जियों की खेती एक साथ की जा सकती है।
एक्वापोनिक्स तकनीक से खेती में जहां शुद्ध पानी की लागत कम आती है वहीं मछली की खुराक पर आने वाली लागत भी कम हो जाती है। एक्वापोनिक्स के तहत जहां मछली पालन किया जाता है वहीं दूसरी ओर कुछ खास तरह की पत्तेदार सब्जियों की खेती की जाती है। इससे मछलियों का उत्पादन भी बढ़ जाता है।
एक्वापोनिक्स फार्म के लिए सही जगह का चुनाव जरुरी
एक्वापोनिक्स फार्म के लिए जगह ऐसी होने चाहिए जहां से पानी को साफ करना आसान हो साथ ही पानी में अमोनिया को कंट्रोल करना भी मुश्किल ना हो। पानी की गुणवत्ता को लगातार बनाए रखने के लिए पानी की आपूर्ति भी सही ढंग से होती रहे।
एक्वापोनिक्स में पानी मछली और फसलों दोनों की खेती की बिच की कड़ी है। जहां जगह की कमी होती है वहां ये तकनीक बहुत ही कारगर है। एक ही जगह पर मछली पालन और खेती दोनों ही हो जाते हैं।
पांच गुना तक बढ़ सकता है मछली उत्पादन
एक्वापोनिक्स खेती के लिए सब्जियों का चुनाव अहम् है। हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे कैप्सिकम, टमाटर, सलाद और तुलसी जैसी पोषक तत्वों से भरपूर सब्जियों का चुनाव करें। ऐसा करने से मछलियों को भी जगह की कमी नहीं पड़ती है। मछलियों का चुनाव भी राज्य और जगह के हिसाब से करें। अगर दोनों का चुनाव ठीक ढंग से किया जाए तो मछली उत्पादन पांच गुना तक बढ़ सकता है।
जानें क्या है एक्वापोनिक्स तकनीक
मछलियों के मल से टैंक के पानी में अमोनिया संग और ऐसी दूसरी चीजें पैदा हो जाती हैं जो पौधों के लिए फायदेमंद होती हैं। इसलिए मछलियों के टैंक वाले पानी को सब्जियों वाले टैंक में छोड़ दिया जाता है। जहां पौधे पानी से जरूरी पोषक चीजें खुद से ले लेते हैं।ऐसे में पौधों को बीमारियों से बचाने और उनकी ग्रोथ के लिए केमिकल और खाद देने की भी जरूरत नहीं पड़ती है।
कम पानी और लागत में खेती
इस प्रक्रिया के दौरान पौधे भी पानी में कुछ चीजें छोड़ते हैं, जिसमे पौधों के अवशेष भी होते हैं जो मछलियों के काम आता है। कुछ दिन बाद वापस इसी पानी को मछलियों के टैंक में छोड़ दिया जाता है। इस तरह से कम पानी और लागत में सब्जी तैयार हो जाती है। वहीं मछलियों की खुराक पर भी लागत कम आती है।