“कोरोना ने छीनी नौकरी, लेकिन नहीं हुए मायूस: हुनर के बल पर मशरूम से बनाया खुद का कॉफी ब्रांड”

करोना काल में कई उद्द्योग बने तो कई बिगड़े। कई लोगों ने अपनी नौकरी गवाई तो कई लोगों ने अपने दिमाग का इस्तेमाल कर रोजगार के नए अवसर तलाशे। इन्हीं में से एक हैं केरल के रहने वाले 45 साल के लालू थॉमस। लालू थॉमस आज एक बड़े उद्योजक है। वे मशरूम से कॉफी का उत्पादन करते हैं। मशरूम से बनने वाली इस कॉफी की डिमांड देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी अधिक है।

संयुक्त अरब अमीरात में 15 साल तक शेफ की नौकरी करने के बाद जब लालू थॉमस की नौकरी चली गई तो उनके दिमाग में घर लौटने का विचार आया। लालू थॉमस ने स्टार्टअप के बारे में कभी सोचा नहीं था लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनी कि उन्हें घर लौटकर कुछ अपना काम करने का फैसला करना ही पड़ा। वह एक वैल्यू ऐडेड फूड प्रोडक्ट तैयार करना चाहते थे।

मशरूम की खेती में नहीं मिली सफलता
केरल लौटने के बाद लालू थॉमस ने शुरुआत में मशरूम की खेती करने का फैसला किया। जब थॉमस छोटे थे तब की उनकी मां शौक से मशरूम की खेती करती थी। लालू थॉमस ने मशरूम उगाना शुरू किया लेकिन उन्हें जल्दी समझ में आ गया कि यह मुनाफे वाला धंधा नहीं है। कोल्लम से दूर ग्रामीण इलाके में रहने वाले लालू थॉमस के आसपास मशरूम की डिमांड नहीं थी। इसके बाद वह कोल्लम के कृषि विज्ञान केंद्र गए और वहां कुछ रिसर्च करने लगे।

कोल्लम के कृषि विज्ञान केंद्र से ली सलाह
कृषि विज्ञान केंद्र में उन्होंने कई रिसर्चर से बात की और उन्हें यह समझ में आया कि वह कोई ऐसा वैल्यू ऐडेड प्रोडक्ट तैयार करें जो यूनिक और नया हो। काफी दिमाग लगाने के बाद लालू थॉमस अपने घर में लगाए मशरूम से ही कुछ यूनिक प्रोडक्ट बनाने के बारे में सोचने लगे। उन्होंने मशरूम पर आधारित विभिन्न उत्पादों का कारोबार किया, जैसे हेल्दी ड्रिंक, सूप पाउडर, सूखे पदार्थ, स्नैक्स, चॉकलेट, साबुन इत्यादि। लालू ने केन्द्र के वैज्ञानिकों के दिशानिर्देश के साथ अपने घर पर ही उत्पादन और रिसर्च शुरू किया।

मशरूम की खेती में कई प्रयोग शुरू किए
मशरूम की खेती कर रहे लालू के लिए सबसे बड़ी कामयाबी यह थी कि इनके उत्पादों को कृषि विज्ञान केन्द्र, कोल्लम की 17वीं एसएसी बैठक के दौरान तत्कालीन विस्तार निदेशक द्वारा लॉन्च किया गया था। शुरूआत में मशरूम की शेल्फ लाइफ कम होने के कारण उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा फिर, उन्होंने ट्रेनिंग ली और मशरूम स्पॉन उत्पादन शुरू किया। इतना ही नहीं इन्होंने मशरूम की खेती में कई प्रयोग भी शुरू किए। इसी प्रयोग से उन्हें मशरूम कॉफी यानी ला बे मशरूम कॉफी का विचार आया।

विभिन्न मशरूमों के साथ तैयार किया कॉफी ब्रांड
केन्द्र के गृह विज्ञान वैज्ञानिकों ने उन्हें विभिन्न मशरूमों के साथ कॉफी का एक अनोखा मिश्रण सफलतापूर्वक तैयार करने में मदद की। जिला उद्योग केंद्र ने लालू को पीएमएफएमई योजना में शामिल किया। इससे वह 10 लाख रुपये की लागत से अपनी नई इकाई स्थापित करने में सफल हुए। उत्पाद के लिए कॉफी बीन सीधे वायनाड जिले के किसानों से खरीदी जा रही है।

कॉफी में 70 प्रतिशत मशरूम और 30 प्रतिशत कॉफी बीन पाउडर
ला बे मशरूम कॉफी 70 प्रतिशत मशरूम और 30 प्रतिशत कॉफी बीन पाउडर से तैयार प्रॉडक्ट है। यह मशरूम कॉफी 5 अलग-अलग मशरूमों का मिश्रण है। कीटाणुरहित मशरूम को विशेष रूप से तैयार किए गए सोलर ड्रायर का उपयोग करके सुखाया जाता है और पल्वराइजर का उपयोग करके इसका पाउडर बनाया जाता है। भुनी और पिसी हुई कॉफी बीन को मशरूम के साथ मिलाया जाता है। इसके 250 कि.ग्रा. तैयार उत्पाद बनाने के लिए लगभग 3000 कि.ग्रा. ताजे मशरूम की आवश्यकता होती है।

450 रुपये प्रति 100 ग्राम है कीमत
मशरूम कॉफी के इस प्रीमियम उत्पाद की कीमत 450 रुपये प्रति 100 ग्राम है। इनकी कंपनी को अबू धाबी स्थित मार्केटिंग कंपनी से 250 कि.ग्रा. का ऑर्डर मिला है। कई अन्य कंपनियां भी अपना ऑर्डर देने के लिए तैयार हैं, लेकिन कच्चा माल एक समस्या है। इस समस्या के समाधान के लिए, कृषि विज्ञान केन्द्र ने कृषि भवन के साथ मिलकर मशरूम उत्पादन के लिए ग्रामीण स्तर पर एक मॉडल समूह-आधारित उत्पादन शुरू किया है। मॉडल मशरूम विलेज 300 से अधिक शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा करेगा। लालू की इस सफलता को आईसीएआर ने अपनी पत्रिका में विशेष स्थान दिया है। जिसकी मदद से यह आज लाखों लोगों तक पहुंच रहा है।

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