Farmer Protest :भारत के साथ ही इटली और पोलैंड में शुरू हुए किसान आंदोलन

दिल्ली की सीमाओं पर किसानों को अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन जारी है। वहीं भारत से बाहर यूरोप में पिछले डेढ़ महीने से जारी किसान आंदोलन अब और अधिक तीव्र हो गया है। पिछले डेढ़ महीने से यूरोपियन यूनियन किसानों के गुस्से से सुलग रहा है। हालत अब ऐसे हो गए है की सरकार पर मुँह छुपाने की नौबत आ गई है। देखा जाए तो इन देशों में गिनती के ही किसान हैं। लेकिन उनके आक्रोश ने दुनिया का ध्यान उनकीओर खींच लिया है। किसान आंदोलन अब इटली और पोलैंड तक फैल गया है।

किसानों ने 30 दिनों तक हड़ताल करने और यूक्रेन की सीमाएं बंद करने की धमकी दी है। यूरोपीय संघ में इटली, पोलैंड, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन, सहित बेल्जियम में पिछले डेढ़ महीने से किसान आंदोलन कर रहे हैं और सरकार उन्हें समझाने का प्रयास कर रही है। हालांकि किसान किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं है।

हजारों की संख्या में किसान ट्रैक्टर लेकर सड़कों पर उतर आए। वे घोषणा कर रहे हैं कि वे यूरोपीय संघ के कार्यालय बंद कर देंगे। 15 फरवरी को, पोलैंड और इटली में किसान प्रदर्शनकारी आक्रामक हो गए और हजारों ट्रैक्टरों को यूरोपीय संघ के मुख्यालय तक ले गए। वहां टायर जलाए गए, नारे लगाए गए और दफ्तर पर अंडे फेंके गए। कुछ देशों में 30 दिनों की हड़ताल का आह्वान किया गया है। पोलैंड के किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर 20 फरवरी तक यूरोपीय संघ ने किसानों की मांगें नहीं मानी तो वे यूक्रेन की सभी सीमाएं बंद कर देंगे।

यूरोप में किसानों की मुख्य मांगें क्या हैं?

पहला यह कि यूरोपीय संघ ने यूरोप में जलवायु परिवर्तन संकट से निपटने के लिए नए कानून पेश किए हैं। असल में यूरोपीय संघ 2050 तक कार्बन तटस्थ होना चाहता है। यूरोपीय संघ की कार्बन उत्सर्जन को शून्य पर लाना की कोशिश है। जिसके चलते सरकार ने किसानों को मिलने वाली ईंधन सब्सिडी कम कर दी है। किसानों का कहना है कि हमारी उत्पादन लागत पहले से ही बढ़ती जा रही है और आमदनी घटती जा रही है। ऐसे में अगर सरकार ईंधन पर सब्सिडी कम कर देती है तो स्थिति और खराब हो जाएगी और हमारे लिए खेती करना मुश्किल हो जाएगा।

यूरोप में किसानों के सामने चार मुख्य समस्याएँ हैं:

1. कृषि की बढ़ती लागत

2. कृषि में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ाना

3. ग्रीन डील के तहत यूरोपीय संघ द्वारा किसानों पर लगाए गए नियम

4. गैर-यूरोपीय देशों से आयात के कारण कृषि उपज की कीमतों में गिरावट

यूक्रेन के कृषि उत्पादों  के आयात का कर रहे हैं विरोध

यूरोप के हर देश में किसानों की अलग-अलग समस्याएँ हैं। पोलैंड और हंगरी के किसान यूक्रेन से सस्ते कृषि उत्पादों का आयात बंद करना चाहते हैं। क्योंकि, इस आयात के कारण स्थानीय उत्पादों को सही कीमत नहीं मिल पा रही है।

सरकार ने सस्ते कृषि उत्पादों का आयात किया शुरू

दूसरी ओर, रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष का फायदा उठाते हुए सरकार ने यूक्रेन से सस्ते कृषि उत्पादों का आयात करना शुरू कर दिया है। इससे यूरोपीय संघ में किसानों के कृषि उत्पादों की कीमतें गिर गयी हैं। इससे किसानों का गुस्सा भड़क गया है। भारत की तरह, यूरोपीय संघ के कुछ देशों में 2024 में आम चुनाव होने हैं। यूरोपीय संघ जर्मनी, फ्रांस, इटली और पोलैंड में चुनावों के मद्देनजर कई नीतिगत बदलावों पर विचार कर रहा है। लेकिन इसका सीधा असर किसानों पर पड़ रहा है। वहीं इसके अलावा, यूरोपीय देश हाल के वर्षों में लगातार सूखे का सामना कर रहे हैं। फसलों की उत्पादकता में कमी के कारण इन देशों पर खाद्य संकट का भी असर पड़ सकता है। ऐसे में किसान और यूरोपीय संघ के बीच छिड़ी इस जंग का क्या नतीजा निकलेगा इसपर सभी देशों की निगाहें टिकी हैं।

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