पोरबंदर: राकेश कुमार,धर्मेश गोयल और इस्माइल गुजरात के अलग-अलग जिलों में रहते हैं। ये तीनों भाई समुद्री मछुआरे हैं हाल के वर्षों में बदले मौसम के मिजाज से परेशान हैं और इनकी कई पीढ़ियों से मछली पकड़ने की परंपरा चली आ रही है।
राकेश बताते हैं कि आज से पांच साल पहले तक की बात करूं तो मई महीने तक हम बड़े आराम से सुबह के समय समुद्र में नाव लेकर चले जाते थे और शाम तक लौट आते थे। दिनभर में इतनी मछलियां मिल जातीं थीं कि हमारा जीवन बड़े आराम से चल रहा था रोजाना 1,500 से 2,000 रुपए की कमाई हो जाती थी लेकिन अब लागत निकालकर 400-500 रूपये की ही कमाई हो पाती है। समुद्र के किनारे की सारी मछलियां गायब हो गईं।
लगभग 1,600 किमी की तटरेखा वाले राज्य गुजरात में लगभग 3,36,181 मछुआरे हैं। इनमें से 9% (30,937) पोरबंदर में, 7% (24,583) वेरावल तालुका (उप-जिला) और 4% (14,589) द्वारका तालुका में हैं। इन जिलों में मछुआरे जिस तरह की स्थिति का सामना करते हैं वह गुजरात के पश्चिमी तट पर सभी तटीय जिलों के समान है।अगस्त 2013 में द्वारका और गिर सोमनाथ अलग-अलग जिले बने। समुद्री मत्स्य जनगणना 2010 में इसलिए वेरावल तालुका के आंकड़े जूनागढ़ और द्वारका तालुका के आंकड़े जामनगर जिले का हिस्सा हैं।
वर्ष 2021-22 में गुजरात में भारत में सबसे अधिक समुद्री मछली का उत्पादन 688,000 टन था। लेकिन पिछले कई वर्षों से इसके उत्पादन में गिरावट आई है। गुजरात के मत्स्य आयुक्त के आकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017 और 2021 के बीच द्वारका में मछली उत्पादन में 16% और पोरबंदर में 32% की गिरावट आई है। जबकि गिर सोमनाथ में 3% अधिक उत्पादन हुआ है।
चक्रवात और तूफ़ान के कारण मछुवारे नहीं निकाल पा रहे स्कूल की फीस
समुद्र के तटों पर मछली पकड़ने वाले मछुवारों का कहना है की तूफ़ान और चक्रवात दोनों से हमारे कार्य पर प्रभाव पड़ता है। इससे हमारी आय पर भी काफी प्रभाव पड़ता है। कमाई न होने के कारण हम अपने बच्चों की पढाई की फीस भी नहीं निकाल पाते हैं। तूफ़ान के चलते हम महीनों मछली नहीं पकड़ पाते हैं। हाल ही में आये चक्रवाती तूफ़ान बिपरजॉय ने मछुवारों का जीवन अस्त वस्त कर दिया है। वे अभी भी मछलियों के शिकार के लिए समुद्र के तटों पर नहीं जा पा रहे हैं।विशेषज्ञों की मानें तो 2001 से 2019 तक समुद्र के चक्रवातों में 52% अधिक वृद्धि हुई है और 1982-2000 की तुलना में चक्रवाती तूफानों की अवधि में 80% की वृद्धि और गंभीर चक्रवाती तूफानों की संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई है।
महंगी मछलियों की आवक हुई कम
पोरबंदर मच्छीमार बोट ऐसोसिऐशन के अध्यक्ष मुकेश पांजरी के अनुसार छपरी,झींगा, सफेद पॉम्फ्रेट, दारा, सुरमई, ईल, पलवा और वरारा, बॉम्बे डक जैसी मछलियां कभी समुद्र के तटों पर मिल जाती थी लेकिन इनको पकड़ने के लिए मछुवारों को काफी गहराई में जाना पड़ता है जिसके कारण अब इनकी आवक काफी कम हो गई है। ये मछलिया बाजार में काफी महंगी बिकती हैं इससे मछुवारों की आय पर काफी प्रभाव पड़ा है।