भारत के सोयाबीन किसानों के अच्छे दिन आने वाले हैं। इस साल ऑयलमील के निर्यात में रिकॉर्ड तोड़ वृद्धी दर्ज की गई है। ऑयलमील में सबसे अधिक योगदान सोयाबीन का होता है। इसलिए इस वृद्धी का सीधा फ़ायदा किसानों को मिलेगा। इससे किसान सोयाबीन की खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे। इस साल ऑइलमील निर्यात में 13 परसेंट और वैल्यू के लिहाज से 35 परसेंट की वृद्धि दर्ज की गई है।
भारत के ऑयलमील के सबसे बड़े ख़रीददारों में बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया, थाइलैंड शामिल है। इन देशों में भारत के ऑयलमील की बहुत मांग है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEAI) ने इसका डेटा जारी किया है। एसईएआई ने बताया है कि भारत ने इस साल 15370 करोड़ रुपये के 48.85 लाख टन के ऑयलमील का एक्सपोर्ट किया है। पिछले साल 11400 करोड़ रुपये के 43.36 लाख टन ऑयलमील का निर्यात किया गया था।
विश्व बाजार में भारत के सोयाबीन मील की सबसे अधिक मांग है क्योंकि अन्य देशों की तुलना में इसकी क्वालिटी अच्छी है और दाम भी कम है। यही कारण है कि दुनिया के अलग-अलग बाजारों में हमेशा यहां के सोयामील और ऑयलमील की मांग बनी हुई है।
वहीं रेपसीड के मामले में निर्यात का आंकड़ा धीमा पड़ता नजर आ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 2023-24 में रेपसीड मील का निर्यात 22.13 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष में इसी अवधि में यह निर्यात 22.97 लाख टन था। पिछले तीन साल में देश में रेपसीड का उत्पादन बढ़ा है। लेकिन सोयामील की डिमांड अधिक होने से रेपसीड के निर्यात में कमी देखि जा रही है।
उधर डी-ऑयल्ड राइस ब्रान के निर्यात पर रोक से राइस मिलर और उत्पादकों पर बुरा प्रभाव पड़ा है। राइस ब्रान की सबसे अधिक प्रोसेसिंग पूर्वी भारत में होती है। आशंका जताई जा रही है कि सरकार ने निर्यात पर प्रतिबंध जारी रखा तो वहां प्रोसेसिंग का काम प्रभावित हो सकता है क्योंकि निर्यात गिरने से मांग में भी कमी आई है।