महानंद डेयरी दूध का कलेक्शन सामने आने से ये साफ़ हो गया हैं कि महानंद डेयरी घाटे में चल रही है। महानंद डेयरी का दूध कलेक्शन 9 लाख से घटकर 80 हजार लीटर तक पहुंच गयी है। कलेक्शन सामने से आरोप और चर्चाएं तेज हो गयी है। महाराष्ट्र की महानंद डेयरी को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड को सौपनें का समय करीब है और इस बीच महाराष्ट्र सरकार ने साफ़ किया है कि महानंद डेयरी को सौंपने का फैसला बहुत सोच-समझकर लिया गया है।
19 साल में डेयरी का दूध संग्रहण 9 लाख लीटर से घटकर 80 हजार लीटर हो गया है। कर्मचारियों को वेतन देना भी मुश्किल हो गया है। वहीं, विपक्ष का आरोप है कि महानंद डेयरी कि जमीन बेचने के लिए एनडीडीबी को सौंपा जा रहा है। महानंद के 18 सदस्यीय निदेशक मंडल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे कार्यभार संभालने का रास्ता साफ हो गया। राष्ट्रीय निकाय ने मौजूदा बोर्ड को भंग करने और ब्रांड के कायाकल्प के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा सॉफ्ट लोन या पूंजी निवेश के रूप में ₹ 253.57 करोड़ की फंडिंग अनिवार्य कर दी थी। हालाँकि राज्य ने मौजूदा बोर्ड को जारी रखने पर जोर दिया था, एनडीडीबी ने इसका पालन करने से इनकार कर दिया।
राजनीति के लिए लगाए जा रहे हैं आरोप
महानंद के अध्यक्ष, राजेश परजाने ने कहा कि आरोप “मुद्दे का राजनीतिकरण” करने के लिए लगाए जा रहे हैं, जबकि महासंघ का उद्देश्य सहकारी समिति को वापस स्थापित करना है। “एनडीडीबी ने हमें ₹ 253 करोड़ का संशोधित प्रस्ताव दिया है, जिसमें से 530 कर्मचारियों को ₹ 128 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। महाराष्ट्र सरकार ने महानंद डेयरी के मामले में पहले ही इशारा दे चुकी है कि डेयरी कि प्राइवेट कंपनियां टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है। दूध वितरण का उनका नेटवर्क मजबूत हुआ है। यही वजह है कि इस आधुनिक दौर में महानंद डेयरी लगातार पीछे जा रही है।