एमएसपी की मांग को लेकर दिल्ली बॉर्डर पर डटे किसानोंने केंद्र सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी की मांग को लेकर एक ओर किसान आंदोलन कर रहे हैं वही दूसरी ओर किसानों उनकी उपज की सही कीमत भी नहीं मिल रही है। केंद्र सरकार के ऑनलाइन मंडी प्लेटफार्म ई-नाम (e-NAM) पर एमएसपी से काफी कम भाव पर सरसों की ट्रेडिंग हो रही है।
ई-नाम के मुताबिक हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में आने वाली शाहाबाद मंडी में 5 मार्च को सरसों का न्यूनतम दाम सिर्फ 3,800 रुपये प्रति क्विंटल रहा। जबकि एमएसपी 5,650 रुपये प्रति क्विंटल है। यानी 1850 रुपये प्रति क्विंटल के घाटे पर फसल बिक्री हुई। इसी तरह हरियाणा की ही लाडवा मंडी में सरसों का न्यूनतम दाम सिर्फ 3810 रुपये प्रति क्विंटल रहा। जबकि थानेसर मंडी में 3831 रुपये न्यूनतम भाव रहा।
किसानों की मांग एमएसपी की मिले गारंटी
किसानों का कहना है की इतने दिनों से हम आंदोलन कर रहे है लेकिन आंदोलन का असर सरकार पर नहीं पड़ रहा है। तिलहन की प्रमुख फसल सरसों का इतना कम दाम हमें मिल रहा है वही सरकार किसान हितेषी होने का ढिंढोरा पीटती रहती है। किसानों ने कहा की किसान आंदोलन के दौरान सरकार किसानों को उचित दाम नहीं दिला पाएगी तो बाद में क्या होगा ? इसलिए हम चाहते है की हमें एमएसपी की गारंटी मिले ताकि कम दाम के शोषण से मुक्ति मिल सके। यही हाल महाराष्ट्र में सोयाबीन का भी है। यहाँ किसानों को 4600 रूपये प्रति क्विंटल की एमएसपी वाले सोयाबीन का दाम सिर्फ 4000 रूपये प्रति क्विंटल ही मिल रहा है। वहीं राजस्थान में भी सरसों उगाने वाले किसानों का बुरा हाल है।
भारत के किसानों के साथ भेदभाव क्यों
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि सरकार भारत के किसानों के साथ भेदभाव कर रही है, उन्होंने कहा कि सरसों और सोयाबीन दोनों प्रमुख तिलहन फसलें हैं। दोनों फसलें उगाने वाले किसानों को फसलें उगाने के लिए पुरस्कृत किया जाना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें इनाम की जगह जुर्माना मिल रहा है। जबकि सरकार दूसरे खाद्य तेल के आयात पर सालाना 1 लाख 40 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है। सरकार ने ऐसी नीति बनाई है कि भारत के किसानों के बजाय दूसरे देशों के किसानों को पैसा मिल रहा है। किसान सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर भारत के किसानों ने ऐसा क्या गुनाह किया कि सरकार उन्हें तिलहन फसलों की खेती के बावजूद सही कीमत नहीं दे पा रही है, उनका हक दूसरे देशों के किसानों को क्यों दिया जा रहा है।