गर्मियों में ऐसे करे पशुओं की देखभाल, नहीं तो हो सकती है बीमारी…

महाराष्ट्र के कई जिलों में थंड है तो कई जिले ऐसे हैं जहां अभी से ही गर्मी ने दस्तक दे दी है। तापमान बढ़ने से सर्वाधिक परेशानी पशुओं को होती है। पानी की कमी और सूखा चारा ऐसी स्थिति में जानवरों को कई प्रकार के रोग होने का डर भी रहता है। गर्मी में जानवरों खयाल रखने की सर्वाधिक आवश्यकता होती है। बढ़ती गर्मी के कारण पशु बहुत अधिक पानी पीते हैं। पशु सूखा चारा नहीं खाते जिसकारण पशुओं की गति धीमी हो जाती है। धुप के कारण जानवर छाया की ओर भागते हैं और छाया में बैठे रहते है।

गर्मी में पशु के शरीर का तापमान बढ़ जाता है, जोर-जोर से सांस लेना, बहुत अधिक पसीना आना जैसी समस्याओंसे जानवरों को जूझना पड़ता है। अत्यधिक गर्मी के कारण पशुओं की नाक से खून बहने लगता है। ऐसी स्थिति में पशुओं के सिर पर ठंडा पानी डालें। पशुओंको पिने के लिए ढ़ेरसारा ठंडा पानी दे। हरा चारा दें, पशुओं को किसी पेड़ के नीचे या गौशाला में बांधना चाहिए। यदि रक्तस्राव नहीं रुकता है, तो पशुचिकित्सक की सलाह पर आहार या दवा के माध्यम से विटामिन सी देना चाहिए।

हरेचारे की तलाश में पशु जो मिले उसे खाकर गुजरा करते हैं ऐसेमें कई बार हरा चारा समझकर पशु विषैले पौधे खा जाते हैं। विषैला पौधा खाने के कारण जानवर गुर्राने लगते हैं। कुछ कहते नहीं है ,बैठते उठते नहीं है कई बार ऐसी स्थिति में जानवरों की मौत हो जाती है। विषबाधा के लक्षण दीखतेहि पशुचिकित्सक की सलाह से उपचार करना चाहिए। जानवरों को कई बार सूर्य की तपती किरणों और पानी की कमी कारण लू लगाने का खतरा रहता है। लू से शरीर की त्वचा शुष्क हो जाती है, पशु थक जाते हैं, भूख कम हो जाती है, दूध का उत्पादन कम हो जाता है। ऐसे में जानवरों पर ठंडा पानी डालें। पशु के सिर पर गीला कपड़ा या बोरा रखे और पशुओंको बार-बार पिने के लिए पानी दें।
पशुओं को पेड़ के नीचे नांद में बांधना चाहिए। खूब साफ ठंडा पानी, चारा देना चाहिए।

पशु प्रबंधन

जनवरोंके शरीर के तापमान को संतुलित रखने के लिए स्वच्छ एवं ठंडा पानी अधिक मात्रा में देना चाहिए।

दिन में एक या दो बार पानी देने के बजाय, दिन में चार से पांच बार पानी दें।

दोपहर के समय पशु के शरीर पर ठंडा पानी छिड़कना चाहिए या सिर पर गीला कपड़ा या बोरा रखना चाहिए। इससे शरीर का तापमान कम करने में मदद मिलेगी।

यदि संभव हो तो बाड़े में स्प्रिंकलर या फॉगर का प्रयोग करना चाहिए।

गौशाला की छत घास, चावल के भूसे, नारियल की भूसी से ढकी होनी चाहिए। गर्मी के दिनों में पानी गिरे इसकी व्यवस्था की जाए।

पशुओं को सुबह या शाम को चराना चाहिए। दोपहर के समय जानवरों को चराने के लिए ले जाने से बचें। जहां तक ​​संभव हो पशुओं को छाया में बांधना चाहिए।

पशुओं को दिन भर के लिए आवश्यक चारा एक साथ न दें बल्कि तीन से चार बार में बांट लें। खराब होने से बचाने के लिए चारे को बारीक काट लेना चाहिए। यदि उपलब्ध हो तो हरा और सूखा चारा मिलाएं।

धान पर सूखी घास, नमक या गुड़ का पानी छिड़कना चाहिए ताकि पशु चारा रुचि से खायें।

यदि चारे की कमी हो तो चारे में चना, मूंगफली के छिलके, गेहूं की भूसी, गन्ने का उपयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए।

अपर्याप्त चारे और ख़राब आहार के कारण पशु कमज़ोर हो जाते हैं। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इसलिए, पिस्सू, सांप और पिस्सू के नियंत्रण के लिए पशु चिकित्सकों द्वारा टीकाकरण कराया जाना चाहिए।

पशु चिकित्सक की सलाह पर कीटाणुनाशक का प्रयोग करना चाहिए।

गर्मियों में गर्भवती पशुओं को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। क्योंकि जन्म के समय बछड़े की प्रजनन क्षमता गर्भाशय में उसके पोषण पर निर्भर करती है। संकर और विदेशी जानवर गर्मी से अधिक प्रभावित होते हैं। जहां तक ​​संभव हो पशुओं को छाया में बांधना चाहिए।

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