फसल उत्पादन में खरपतवार किसान के सबसे बड़े दुश्मन हैं। ये अवांछित पौधे हैं जो या तो पौधे को बढ़ने से रोकते हैं या धीरे-धीरे नष्ट कर देते हैं। लेकिन भारत में एक ऐसी खरपतवार है जिसे किसानों की लाख कोशिशों के बावजूद भी खत्म नहीं किया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं गाजर घास की, जो अब भारत के सभी हिस्सों में उगती है। इसे पार्थेनियम हिस्टोरोफस भी कहा जाता है।
गाजर घास न केवल फसल के लिए बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। लेकिन आज यह घास हमारे देश में 350,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैली हुई है। गाजर घास को कांग्रेस घास भी कहा जाता है. इसके साथ कांग्रेस नाम जुड़ने का एक और कारण है। आज हम आपको कांग्रेस घास के बारे में सबकुछ बताने वाले है ।
क्यों पड़ा इसका नाम कांग्रेस घास:
दरअसल, ये वो वक्त था जब देश में आजादी की ठंडी हवाएं बह ही रही थीं, लेकिन जल्दी ही ये ठंडी हवाएं भुखमरी का पाला बन गईं। मुश्किल से दो-तीन साल पहले आजाद हुए देश में अब ये भुखमरी किसी महामारी की तरह फैलने लगी थी। खेती सबके पास थी, लेकिन अंग्रेजों ने हमारे देश के किसानों को ऐसा चूसा कि उनके पास ना तो देश का पेट भरने के लायक अनाज था और ना ही इतनी बड़ी मात्रा में उत्पादन करने का सामर्थ्य।
लिहाजा, भुखमरी की सैय्या पर आजादी का जनाजा ना निकले, इसके लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दूसरे देशों से गेहूं आयात करने का फैसला लिया। बात जब रोटी की थी तो इसके लिए 1950 के दशक में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक देश अमेरिका काम आया। भारत में तब अमेरिका से भारी मात्रा में गेहूं आयात होने लगा। कुछ आंकड़ों की मानें तो 1966 तक भारत में अमेरिका से डेढ़ करोड़ टन से भी ज्यादा गेहूं आयात हुआ। इस दौरान अमेरिका से गेहूं के साथ कुछ और भी अनचाही चीज हिंदुस्तान की मिट्टी पर आ चुकी थी। लेकिन ये बात जब तक समझ आती तब तक गाजर घास का बीज देश के कोने-कोने में फैल गया था।
ऐसा कहा जाता है कि गाजर घास पहली बार 1955 में पुणे, महाराष्ट्र में देखी गई थी। तब से अब तक, यह अमेरिकी खरपतवार किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है। क्योंकि जब अमेरिकी गेहूं के साथ गाजर घास भारत आई थी, तब जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। परिणामस्वरूप, इसे हर गाँव में “कांग्रेस ग्रास” के नाम से जाना जाने लगा। लेकिन क्या गाजर घास का प्रयोग अनजाने में किया गया था या यह एक अमेरिकी चाल थी, इस पर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है ।
कितनी खतरनाक है गाजर घास? :
गाजर घास दक्षिणी मध्य अमेरिका का मूल निवासी पौधा है। इसकी लंबाई 1 से 2 मीटर तक होती है. यह PL-480 गेहूं किस्म के साथ अमेरिका से भारत आया था। पहले यह खरपतवार केवल गैर-कृषि क्षेत्रों में ही पाई जाती थी, लेकिन अब यह सभी प्रकार की फसलों, बगीचों, जंगलों के साथ-साथ सड़कों और रेलवे के किनारों पर भी बड़ी मात्रा में उगती है। गाजर घास को कई स्थानीय नामों से भी जाना जाता है जैसे कांग्रेस घास, चटक चांदनी घास और कड़वी घास।
गाजर घास का पौधा अपना जीवन चक्र 3-4 महीने में पूरा करता है और पूरे वर्ष फलता-फूलता है। यह सभी प्रकार के वातावरण में तेजी से बढ़ता है। गाजर घास न केवल कृषि के लिए, बल्कि जानवरों और लोगों के लिए भी हानिकारक है। अगर डेयरी पशु इसे घास समझकर खा लें तो दूध का उत्पादन 40 फीसदी तक गिर सकता है. यदि कोई व्यक्ति इसके संपर्क में आता है, तो उसे एक साथ अस्थमा, त्वचा रोग और कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस नामक बीमारी हो सकती है।