छत्रपति संभाजीनगर के एक किसान ने पानी की महत्ता को साबित कर दिखाया है। सिल्लोड तहसील के बोदवड गांव के एक किसान ने अपने खेत से पानी की चोरी रोकने और जंगली जानवरों द्वारा काली मिर्च को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए अपने खेत में 360-डिग्री कैमरा लगाया है। यह स्थिति मराठवाड़ा में सूखे जैसी स्थिति से जुड़ी है। महाराष्ट्र के कई हिस्सों में लोग लंबे समय से सूखे की मार झेल रहे हैं। बांधों और तालाबों में पानी नहीं होने से किसानों को बड़े संकट का सामना करना पड़ रहा है। आज स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि किसानों को पानी की चोरी रोकने के लिए अपने खेतों में निगरानी के लिए कैमरे लगाने पड़ रहे हैं।
इस किसान का कहना है कि इस साल पानी की काफी समस्या है। इस साल बारिश कम हुई है और सूखे की स्थिति इस बार काफी गंभीर है। अभी तक पानी की चोरी नहीं हुई है, लेकिन हमें नहीं पता कि भविष्य में क्या होगा। इस कैमरे का फायदा यह है कि 1.5 एकड़ के काली मिर्च के खेत की फसल को कोई चुरा नहीं सकता है और इस कैमरे की मदद से आप उन जंगली जानवरों की पहचान भी कर सकते हैं जो खेत को नुकसान पहुंचा रहे हैं। किसान ने कहा कि उसे cctv कैमरों से स्क्रीनशॉट के माध्यम से सूचनाएं भी प्राप्त होंगी।
आखिर कितना है महाराष्ट्र में पानी का संकट:
देश में सूखे और जल संकट से प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र भी शामिल है। इसका कृषि पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। पिछले साल मानसून में देरी के कारण बुआई में काफी देरी हुई थी. कई किसानों को दोबारा बुआई करनी पड़ी। राज्य के कई इलाकों में जानवरों के लिए भी पीने के पानी की कमी हो गई है। इसके बाद राज्य सरकार ने बैठक की और कई इलाकों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया. महाराष्ट्र का लातूर सूखे और पानी की कमी के लिए जाना जाता है, जहां पीने का पानी ट्रेन से पहुंचाया जाता था। इस साल, सोलापुर को पानी की आपूर्ति करने वाले उयनी बांध में जल स्तर शून्य से नीचे पहुंच गया। बांध में जलस्तर शून्य से 36 फीसदी नीचे बताया जा रहा है।
खेती में लगता है कितना पानी:
पानी की कमी का संकट होगा तो सबसे ज्यादा खेती प्रभावित होगी। खेती में सबसे ज्यादा भूजल का इस्तेमाल होता है. कुछ कृषि एजेंसियों के अनुसार भारत में 90 परसेंट पानी का इस्तेमाल कृषि में होता है। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, वर्ष 2000 में उपयोग किए गए कुल पानी का 85.3 फीसदी खेती के काम में लाया गया था। इसलिए अब कई राज्य ऐसी फसलों और किस्मों पर फोकस कर रहे हैं जिनमें कम पानी खर्च होता है।