साल के हर सीजन में मूंग की खेती की जा सकती है। भारत में दलों की मांग हमेशा ही बानी रहती है। दालों के दाम भी अच्छे मिलते है, इसलिए दलों की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा बन सकती है। मूंग की खेती के लिए अच्छी बारिश की आवश्यकता होती है।
खेती के लिए 20 से 40 डिग्री तापमान उपयुक्त
मूंग की बढ़वार के लिए 20 से 40 डिग्री से. तापमान उपयुक्त होता है। किसान इस समय गर्मी में भी मूंग की बुवाई कर सकते हैं। मूंग जैसी दलहनी फसलों की बुवाई से यह फायदा होता है कि यह खेत में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती हैं, जिससे दूसरी फसलों से भी बढ़िया उत्पादन मिलता है।
मूंग की खेती के लिए इन बातों का रखें ख़याल
खेती के लिए दुमट मिट्टी सबसे अधिक उपयुक्त होती है। इसकी खेती मटियार और बलुई दुमट मिट्टी में भी की जा सकती है लेकिन उसमें उत्तम जल-निकास का होना आवश्यक है। ग्रीष्म व बसंत कालीन मूंग की फसल को 4 से 5 सिंचाइयां देना आवश्यक होता है। पहली सिंचाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद व अन्य सिंचाई 12 से 15 दिन के अंतर पर करें। फूल आने से पहले तथा दाना पड़ते समय सिंचाई आवश्यक है। सिंचाई क्यारी बनाकर करना चाहिए।
अच्छी उपज के लिए खेत की जुताई आवश्यक
ग्रीष्मकालीन फसल को बोने के लिए गेहूं को खेत से काट लेने के बाद केवल सिंचाई करके मूंग बोयी जाती है। लेकिन अच्छी उपज के लिए एक बार हैरो चलाकर जुताई करके पाटा फेर कर खेत तैयार कर लें। प्रति हेक्टेयर खरीफ सीजन में किस्म के अनुसार 12 से 15 कि.ग्रा. बीज लें। बसंत तथा ग्रीष्मकालीन ऋतु में 20 से 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज बोएं।
मृदा परीक्षण के आधार पर करें उर्वरकों का प्रयोग
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए। 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर कम्पोस्ट की खाद डालना भी आवश्यक है। मूंग की फसल के लिए 15-20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 40 कि.ग्रा. पोटाश एवं 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की जरुरत होती है। जिसके लिए 190 किग्रा. एन.पी. के. (12:32:16) के साथ 23 किग्रा. सल्फर बेंटोनाइट प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय प्रयोग करें।
जिंक की कमी होने पर क्या करें
कुछ क्षेत्रों में जिंक की कमी की अवस्था में 15-20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए। फसल के अच्छे प्रारंभिक बढ़वार और जड़ों के विकास के लिए समुंदरी शैवाल से बने पौध विकास प्रोत्साहक सागरिका Z++ @ 8-10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बुवाई के समय जरूर डालें। इसके साथ सागरिका तरल का 250 मिली प्रति एकड़ की दर से 100 लीटर में घोल बनाकर फूल आने से पहले, फूल आने के बाद और दाने बनते समय 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।