प्याज किसानों को अक्सर प्याज स्टोरेज की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। प्याज को लम्बे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता। समय पर माल नहीं बिक पाने से किसानों को प्याज स्टोरेज की समस्या से गुजरना पड़ता है। अक्सर स्टोर किये हुए प्याज में फंगस लग जाता है या प्याज सड़ने लगता है। प्याज खराब होने से कई बार किसान लगत भी नहीं वसूल पाते। ऐसे में कुछ खास टिप्स अपनाकर किसान अपने प्याज को लम्बे समय तक सुरक्षित रख पाएंगे।
देश में लगभग 70 प्रतिशत प्याज रबी सीजन में होता है। यही प्याज स्टोर करने लायक होता है। यह अप्रैल से मई तक तैयार होता है और उसके बाद नवंबर तक चलता है। जबकि खरीफ सीजन के प्याज स्टोर करने लायक नहीं होता, क्योंकि इसकी शेल्फ लाइफ बहुत कम होती है।
लम्बे समय तक प्याज रहेगा सुरक्षित
ब्लैक मोल्ड
यह प्याज में भंडारण के दौरान होने वाला एक गंभीर रोग है, जो एस्परजिलस नाइजर नामक मृतोपजीवी कवक से फैलता है। संक्रमण वाले भाग में सफेद माइसिलीयम दिखाई देने लगता है और यह बाद में घने काले घेरे बनाता है. गंभीर अवस्था में कंद की संपूर्ण सतह के साथ-साथ आंतरिक परतों को भी काले रंग का घेरा ढक लेता है।
प्रबंधन
आईसीएआर के वैज्ञानिकों ने कहा है कि फसल उखाड़ने के 20 से 25 दिनों पहले कार्बण्डाजिम 0.1 प्रतिशत या कार्बण्डाजिम + मैन्कोजेब 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें।
भंडारगृह में क्लोरोपायरीफॉस 0.1 प्रतिशत से रोगाणुनाशन करें। कंदों को 37.8° सेल्सियस तापमान व 36 प्रतिशत आपेक्षिक आर्द्रता पर व्यवस्थित रूप से सुखाकर 30° सेल्सियस व 50 प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता पर भंडारित करें। भंडारगृह में वायु के आवागमन का सुचारू प्रबंधन करें।
बॉट्रायटिस नेक रॉट
यह भंडारण में लगने वाला रोग है। भंडारण में 90 प्रतिशत प्याज की सड़न इसी रोग के कारण होती है। रोग का संक्रमण, कंद की कटिंग के बाद, सामान्य रूप से दिखाई देने वाले गर्दन के टिश्यू से अधिक होता है। लक्षण के प्रथम सूचक के रूप में गर्दन वाले भाग के रोग प्रभावित ऊतक मुलायम होने लगते हैं।
रोग का सड़न गर्दन के टिश्यू के माध्यम से तेजी से नीचे की ओर बढ़ने लगता है। गर्दन के सड़न वाले ऊतकों से नीचे सड़न जल्दी होती है। जब रोगग्रस्त कंदों को काटा जाता है तो गर्दन वाले भाग में भूरे रंग के जल भराव टिश्यू दिखाई देते हैं।
प्रबंधन
फसल उखाड़ने के पहले बेनलेट 0.1 प्रतिशत या कार्बण्डाजिम 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करें। क्लोरोपायरीफॉस या कार्बण्डाजिम का उपयोग करके भंडारगृहों को संक्रमण रहित करें। कंदों को 32-34 डिग्री सेल्सियस तापमान पर सुखाएं। कटाई के बाद सड़े हुए एवं क्षतिग्रस्त कंदों को छांटकर अलग कर दें। भंडारण में सुचारू रूप से हवा आने-जाने का इंतजाम करें।