सोयाबीन ने बढ़ाई सरकार की परेशानी किसानों ने किया ऐलान भाव नहीं तो वोट भी नहीं

देशभर में चुनाव का उत्सव मनाया जा रह है। दो चरण के मतदान निपट गए हैं। लेकिन आनेवाले चुनाव में किसानों ने न सिर्फ बीजेपी बल्कि अन्य दलों को भी मुश्किल में डाल दिया है। बात अगर महाराष्ट्र के मराठवाड़ा की करें तो यहां के सोयाबीन किसानों ने सभी दलों को धुल चटाने की ठान ली है। मराठवाड़ा की आठ सीटों ले किये मतदान होने को हैं। लेकिन यहां के किसानों ने सभी राजनीतिक दलों से ये साफ़ कर दिया है की अगर वोट चाहिए तो उन्हें सोयाबीन के दाम बढ़ाने होंगे।

सोयाबीन की घटती कीमतों ने बढाई मुसीबत 

दरअसल मराठवाड़ा में सोयाबीन की घटती कीमतों ने किसानों की हालत ख़राब कर रखी है। यहां के किसानों ने इस बार के लोकसभा चुनाव में ये ऐलान कर दिया है कि अगर सरकार सोयाबीन कि कीमत में बढ़त नहीं करती है तो किसान उन्हें वोट भी नहीं देंगें।

सोयाबीन और कपास मुख्य फसल 

मराठवाड़ा के आठ जिलों में सोयाबीन और कपास दो मुख्य फसलें हैं। जिले में पानी की कमी से किसानों के पास सोयाबीन के आलावा कोई और फसल की बुआई का ऑप्शन नहीं है। सोयाबीन के गिरते दामों ने आग में घी का काम किया है। यहां लगभग सभी घरों में सोयाबीन की सेकड़ों बोरियां सही दाम मिलाने का इन्तजार कर रही हैं। पिछले साल मराठवाड़ा में सोयाबीन की कीमत कम से कम 40 लाख हेक्टेयर थी। इसीलिए मराठवाड़ा के चुनाव में सोयाबीन की कीमत और खाद समेत अन्य चीजों पर जीएसटी का मुद्दा राजनितिक दलों पर भारी पड़ रहा है।

खेती के अलावा आय का और कोई स्त्रोत नहीं 

मराठवाड़ा में किसानों के पास खेती के अलावा आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है। पिछले दस वर्षों में कोई बड़ा उद्योग नहीं आया है। ऐसे में पीएम सम्मान निधि से मिलने वाले 6 हजार रुपये कितने हद तक पर्याप्त होंगे? इस बात पर अब भी राजनीतिक पार्टियों और किसानों की बहस जारी है।

किसानों की भूमिका राजनीतिक दलों के लिए बनी मुसीबत 

मराठवाड़ा में गर्मी अपने चरम पर है। खेत सूखे हैं, तालाबों में पानी नहीं है। खेती के लिए पानी मांगना अपराध करने जैसा है। सिर्फ मराठवाड़ा ही नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र में 35 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर सोयाबीन और कपास की फसल उगाने वाले किसानों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अब दो चरणों का चुनाव खत्म हो चुका है और 3 चरण बाकी हैं। ऐसे में किसानों की ये भूमिका राजनीतिक दलों के लिए मुसीबत खड़ी कर रही है।

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